________________
une anumanmun
man
१५० श्रीमद्वीर विजयोपाध्याय कृतहेम रूप धारत मेरे लाई ॥ जज ले धरमनाथ एक वारा । आतम हित कर ले तुं प्यारा ॥
औ० ॥ ५ ॥ इन बिन और देव नहीं पूजो। विधिसे धरम जिणंदकुं पूजो ॥ मनमें ध्यान धरो एक धारा । कामित फलके देवन हारा ॥ औ ॥ ३ ॥ नूतन मंदिर आप पधारो । एही सेवक अरजी अवधारो ॥ घंटारव नौबत जब गाजे। तब सेवकको आनंद जागे ॥ औ॥४॥ पुरव पुन्य दरिशण पायो । जब में हेमनगरमें आयो । वीरविजयकी विनती एही आतम थानंद मुजको देही ॥ औ० ॥ ५ ॥
श्रीदुशियारपुर मंमन वासुपूज्य
जिन स्तवन ।
॥ राग खमाच ॥ ॥ज सुविधा मेरी मिट गई, ए देशी॥
वासुपूज्य जिनराज आज मेरो मन हर लीनोरे ॥ आंकणी ॥ वासव वंदित पद कज इंद। वसुपूज्य राजाके नंद । नविक कमल विकासी चंद, तनू रक्त रंगीलोरे ॥ वा ॥ १॥ कामित