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अथ पदो।
॥ राग-भैरवी ॥ मेरी क्याही बेदरदी रही ॥ मे ॥ तोरे नाथसे घर नावसाय । मे ॥ १॥ में तो मूर हती न तो मैं रही।जग नाम कातो अब हो रही ॥ तो ॥२ ।। हुं तो ढुंढ रही न तो यार मिला ॥ अब काल अनंतो ही रोय रही ॥ तो॥ ३ ॥ न तो मीत विवेक न धर्म गुनी । अब सीस धुनी हुँ तो वेठ रही ॥ तो ॥ ४ ॥ हुँ तो नाथ ही नाथ पुकार रही। कुमता जर जारही जार रही। तो ॥५॥ तुं तो आप मिला मन रंग रला । अब आनंद रूप आराम लही ॥ तो ॥ ६ ॥
पद बीजूं।
॥राग-वसंत ॥ हमकु बम चले बन माधो, ए देशी।
तुं क्युं नोर नये शिव राधो । वाधा मोच करो मनमां रे ॥ तुं० ॥ आंकणी ॥ फूली वसंत कंत चित्त शांति, ज्रांति कुवास फूल मति दोरे। मनमोहन गुण केतकी फूली, समता रंग चर्यो