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॥ विभाग दूसरा ॥ श्रीमद् नपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजी महाराज विरचित
स्तवनावली। ॥ श्रीआदिजिन स्तवन ।
॥राग जेजेवंती ॥ आदि मंगल करूं, आदि जिन ध्यान धरूं, फेर नही पास परुं, नव वन जालमें। लागी तोरी माया जोर, देखत हुं ठगेर ठगेर, दरिसण पुरलन लीयो बहु कालमें ॥ आप ॥ १ ॥ माता मरुदेवा नंद, नाजी राय कुल चंद, शषन जिनंद प्रजु, आदि को करण है । डोमी सब राज रीछि, संजमसे प्रीति किधी । जगतकी नीति सब रीति बतलाश है ॥ आ॥२॥ उरधर तप करी, अष्टापदोपरि चमी, अणशण करी वरी, शिव पटराणी है । ऐसी गति तिहारी देव, तुही जाणे नित्यमेव, अकल अलख तेरो अगम स्वरूप है ॥ आ ॥ ३॥ अहनिश तेरे विच, कीये जिने समचित्त, नयि तिने नीरजीक,