________________
स्तवनावली।
स्तवन तेरमुं। ॥राग बसंत सिंध काफी ॥ रे सुन वीर जिनंदा चरण शरण व्युं तेरा ॥ सुन ॥ काम क्रोध मद राग अज्ञाना, लोन वेष मोह चेरा । माया कुरांमी मदयुत सांमी, इन दिनों मुजे घेरारे ॥ सुन ॥१॥ मन वचन तनुसें करत आकर्षन, वाम रस नेरा । सब धन दाहे अकर रोगको, रंजित पर गुण केरारे ॥ सुन ॥२॥ संका कंखा ब्रांति बढावे, ममता आश घनेरा। अप्रीति करे बिनकमें जनको, दीयो गति चार वसेरा रे ॥ सुन ॥३॥ चारित्र राजको त्रास दीये नितु, निज गुन दावे मेरा ॥ सद आगम संतोष सुरंगा, सम्यग दरसन मेरा रे ॥ सुन ॥४॥ हुकम करो करें सांनिध मेरी, नासे नरम अंधेरा । आत्म आनंद मंगल दीजे, हुँ जिन बालक तेरा रे ॥ सुन ॥५॥
स्तवन चौदमुं।
॥ राग गोडी॥ वीर जिनेश्वर स्वामी आनंद कर । वीर ॥