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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
स्तवन बीजुं ।
॥ राग ठुमरी ॥ चलो सजनी जिन बंदनको मधुवनमें पास निरंजनको ॥ च० ॥ टेक ॥
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समेत शिखर पर प्रभुजी विराजे, दरशन पाप निकंदनको ॥ च० ॥ १ ॥ अश्वसेन नरपति के नंदा, दुर करो दुख बंधनको ॥ च० ॥ २ ॥ तमराम आनंद के दाता, बामा मात आनंदन को ॥ च० ॥ ३ ॥
स्तवन त्रीजुं ।
पारस नाथ जपत है जो जन, ए देशी ॥ पास जिनंद यानंदके दाता, तीन जवनमें मोह लियो || पा० ॥ टेक ॥
वामानंदन पाप निकंदन, तीन जवनमें नाम गयोरे ॥ पा० ॥ १ ॥ कमासूरको मंद हर लींनो, सात जनममें जयकार लियोरे पा० ॥ २ ॥ श्रतम समेत शिखर चल जाऊं, जनम मरन दुख दूर थोरे ॥ पा० ॥ ३ ॥