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स्तवनावली।
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स्तवन चौदमुं।
॥ राग भैरवी में गजल ॥ मुख वोल जरा यह कहदे खरा, तुं ओर नहीं में ओर नहीं ॥ मुख०॥आंचली ॥ तुं नाथ मेरा में दुं जान तेरी, मुजे क्युं विसराइ जान मेरी ॥ जव करम कटा और नरम फटा ॥ तुं
और नहीं ॥ १ ॥ तुं हे ईश जरा में हुं दास तेरा ॥ मुजे क्युं न करो अब नाथ खरा ॥ जव कुमति टरे ओर सुमति वरे ॥ तुं ओर नहीं ॥ २ ॥ तुं हे पास जरा में हुं पास परा ॥ मुजे क्युं न गेमावो पास टरा ॥ जव राग कटे ओर केप मिटे ॥ तुं ओर नहीं ॥ ३ ॥ तुं हे अचर वरा में हुं चलने चरा, मुजे क्युं न बनावो आपसरा ॥ जव होश जरे ओर सांग टरे ॥ तुं ओर नहीं ॥ ४ ॥ तुं हे नूप वरा शंखेश खरा, में तो आतमराम आनंद जरा ॥ तुम दरस करी सब ब्रांति हरी ॥ तुं ओर नही० ॥ ५ ॥
स्तवन पंदरमुं।
॥ राग सोरठ॥ लगीलो वामानंदन स्युं । नरम नंजन तुं ।।