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७० श्रीमद्विजयानंदमूरि कृत--
स्तवन बव्वीशमुं।
॥ राग ठुमरी ॥ में देखा चिदघन पारसको, मेरे काज सरे
सब आजजी ॥ में ॥ टेक ॥ नीलवरण तनु सुर नर मोहे, शांति वदन सुख साजजी ॥ में ॥ १॥ अष्टादश षण गए घरे, सारे नक्त सब काजजी ॥ में ॥ २॥ चंद वदन नवि जन मन मोहे, तूं त्रिजुवन सिर ताजजी ॥ में ॥ ३॥ जनम जनममें तुम पद सेवं, एही आतमराजजी ॥ में ॥४॥
स्तवन सत्तावीशमुं। ॥ राग अंग्रेजी बाजेकी चाल ॥
आनंद तेरे दर्शका जिनराज मार्नु हुँ ॥ श्रा० ॥ टेक ॥ तुंही आनंद कंदका है तार जानुं हुं, अवर देव देखीये विशेषीयेजी तुं॥ आ ॥ १॥ मुळे करो अमार तार मार जार तुं, तुंही जो आज नेटीयो चमेटीयोजी तुं ॥ आ॥ २॥ आत्मा आनंद चंद फंद फार तुं, मुफ एक रूप कीजीए दातार पास तुं ॥ आ ॥ ३॥