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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
समतारस जरे नयन कचोले, अमृत रस वरसे दृग तारी | शांत वदन जविजन मन मोहे, सोहे आनंदरस करतारी ॥ तो० ॥ १ ॥ काम मदन जामिनी संग नाही, शस्त्र रहित नहीं द्वेष विकारी । समरस मगन मगन निजरूपे, सब देवनकी बबि मदहारी ॥ तो० ॥ २ ॥ ध्यान मगन कर उपर कररी, पद्मासन विपदा सब गरी । पूरण ब्रह्म आनंद घन स्वामी, नामी नाम रटे घटारी ॥ तो० ३ || शांतरसमय मूरति राजे, निरविकार समतारस जारी ॥ तीन जुवनके देवनकी बबि, तनकही तैसो रूप न धारी ॥ तो० ॥ ४ ॥ तीनोंही देव अनंग सुनटनें, वश कीने शक्ति सब जारी || आतम आनंद निज रस राची, पारसनाथकी हुं बलिहारी ॥ तो० ॥ ५ ॥ इति ॥
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अथ श्री महावीर जिन स्तवनानि । स्तवन पहें ।
॥ राग ॥ आइ वसंत ॥ वीर जिनंद कृपाल हो, तुं मुऊ मन जाया ॥ टेक ॥