________________
५८
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
श्री शंखेश्वर ||३|| मत जमत शंखेश्वर स्वामी, पामी चम सब मारेरे ॥ जनम मरणकी नीति, निवारी, वेग करो जब पारेरे ॥ श्री शंखेश्वर० ॥ ४ ॥ यतमराम आनंद रस पूरण, तुं मुज काज सुधारेरे ॥ अनहद नाद बजे घट अंदर, तुंही तुंही तान उच्चारेरे || श्री शंखेश्वर० ||२||
-प्रि
स्तवनं दशमं ।
॥ राग खमाच ॥
श्री शंखेश्वर दरस देख, कुमति मोरी मिट गरे याज || चली ॥ ज्ञान वचन पूजा रस बायो, नाश कष्ट जविजन मन जायो ॥ युं जिन मुरति रंग देख, दुरगति मेरी खुट गरे || श्री
खेश्वर० ॥ १ ॥ निरविकार वामासंग त्यागी, जप माला नहीं नाथ निरागी । शस्त्र नहीं कर द्वेष मिटे, चमता सब बुट गरे || श्री शंखेश्वर० ॥२॥ निज विभूति लीनी लार, लोकालोक करी उजवार । नाम जपे सब पाप कटे, दुर्मति सब लुट गरे || श्री शंखेश्वर० ||३|| आनंद मंगल जगमें चार, मंगल प्रथम जगत करतार । श्रीवामा सुत पास तुंही, अघ चांति मिट गईरे ॥ श्री शंखे