________________
wwwwwwwwwwwwww
४४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतआनंदघन सुख रंगी। सु ॥ ५ ॥ शुद्ध अशुद्ध नास अविनासी निरंजन निराकारो । स्यादवाद मत सगरो नीको कुरनय पंथ निवारो। सु॥६॥ सप्तनंगी मत दायक जिनजी । एक अनुग्रह कीजो आत्मरूप जिसो तुम लाधो । सो सेवक को दीजो ॥ सु० ॥ ७ ॥
॥ श्री नमिनाथजिन स्तवन ।। ॥ आ मिलवे बंसी वाला-कान्हा, ए देशी ॥
तारोजी मेरे जिनवर सां बांह पकम कर मोरी । कुगुरु कुपंथ फंदथी निकसी। सरण गही अब तोरी ॥ ता ॥ १ ॥ नित्य अनादि निगोद में रुलतां । फूलतां नवोदधि मांही ॥ पृथ्वी अप तेज वात स्वरूपी । हरित काय मुख पाइ। ता॥२॥ बिति चरिंडी जात जयानक, संख्या दुखकी न कां । हीन दीन जयो परवस परके, ऐसे जनम गमाश् । ता० ॥ ३ ॥ मनुज अनारज कुल में उपनो, तोरी खबर न कां । ज्यूं त्यूं कर प्रज्जु मग अब परख्यो । अब क्यों बेर लगाई। ता ॥ ४ ॥ तुम गुण कमल ब्रमर मन मेरो । नमत नहीं है उमाश् । तृषत मनुज अमृत रस