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स्तवनावली। नीपजे । माटी तनो घट जेम जी । तिम ही निमित्त जिनजी विना । ऊजल था हूं केम जी। श्रीसुधा त्रिकरण शुद्ध थावे यदा । तदा सम्यग दर्शण पाम जी । पूजे त्रिक ब्रह्म ज्ञान है। त्रिक मिटे शिवपुर गम जी । श्रीसु ॥५॥ एही त्रिण त्रिक मुफ दीजीए । लीजिये जस अपार जी। कीजीए नक्त सहायता । दीजीए अजर अमार जी ॥ श्री सु॥६॥ अब जिनवर मुफ दीजीए, आतम गुण नरपूर जी। कर्म तिमिर के हरण कों, निर्मल गगन जूं सूरजी ॥ श्री सु० ॥ ७॥
॥श्री चंप्रन जिन स्तवन ॥ ॥ चाहत थी प्रभु सेवा वा करूगी उलटी कम बनाईरी,
एदशी ॥ चाह लगी जिनचं प्रनु की। मुक मन सुमति ज्यूं आरी। जरम मिथ्या मत दूर नस्यो है। जिन चरणां चित्त ला सखी री ॥चा॥ सम संवेग निरवेद लस्यो है। करुणारस सुखदारी जैन बैन अति नीके सगरे, ए नावना मननाई सा चा०॥२॥ संका कंखा फल प्रति संसा कुगुरु संग बिटका री। परसंसा धर्महीन पुरुषकी इन नवमांही न कांस॥चा ॥३॥ कुग्ध सिंधु रस
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