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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतऐरावण सरिसो गज बांभी। लंवकरण मन चाह करंदा । जिन बांमी मन अवर देवता। मूढमति मन नाव धरंदा।श्री श्रेण ॥४॥ को त्रिशूली चक्री फुन कोश् । जामनी के संग नाच करंदा । शांत रूप तुम मूरति नीकी । देखत मुऊ तन मन हुलसंदा । श्री श्रेण॥५॥ चार अवस्था तुम तन सोने । वाल तरुण मुनि मोह सोहंदा । मोद हर्ष तन ध्यान प्रदाता। मूढमति नहीं द लहंदा।श्री श्रेण ॥ ६॥ बातम ज्ञान राज जिन पायो । पूर जयो निरधन दुख धंदा । समता सागर के विसरामी। पायो अनुभव ज्ञान अमंदा ॥श्रीश्रेण्॥ ॥ श्रीवासुपूज्य जिन स्तवन ॥
॥ अडल की चाल ॥ वासुपूज्य जिनराज आज मुज तारीये। करम कठण मुख देत के बेग निवारीये । वीतराग जगदीश नाथ त्रिजुवन तिलो। महा गोप निर्याम धाम सब गुण निलो॥१॥ काल सुनाव मिलान करम अति तीसरो । होनहार जिय सक्ति पंच मिली धीसरो। एक अंस मिथ्यात वात ए सांजली। कीये मदिरा आंख न धामली ॥॥ पंचम काल विहाल नाथ ढुं आश्यो । मिथ्या मत बहु जोर