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२२ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतपरम करतारा जी ॥ अ० ॥ ॥ अनंत ज्ञान दर्शन सुख लीना । मेट मिथ्यात अंधारा । अमर अटल फुन अगुरुलघुको । धारा सारा २ अनंत बल नाराजी ॥ अ० ॥ ३ ॥ बंध उदय बिन निमैल जोति । सत्ता करी सब बारा । निज स्वरूप त्रय रन बिराजे । बाजे राजे २ आनंद अपाराजी ॥ अ०॥ ४ ॥ज्ञान वीर्य सुख जीवत धारी। मदन चूत जिन गारा । त्रिजुवनमें जश गावत तेरा । जगस्वामी ५ प्राण प्याराजी ॥ अ० ॥५॥ निज आतम गुण धारी प्रजुजी । सकल जगत सुखकारा । आनंद चंद जिनेसर मेरा । तेरा चेरा ५ हुँ सुखकारा जी ॥ अ० ॥ ६ ॥
॥श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ नाथ कैसे गज के बंद छुडायो, ए देशी ॥
सुमति जिन तुम चरण चित्त दीनो ।ए तो जनम जनम मुख बीनो ॥ सु० ॥ आंकणी ॥ कुमति कुलट संग दूर निवारी सुमति सुगुण रस जीनो । सुमतिनाथ जिन मंत्र सुएयो है । मोह नींद नश् खीनो ॥ सु॥१॥ करम परजंक बंक अति सिज्या । मोह मूढता दीनो। निज गुण नूल