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स्तवनावली |
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संग सिद्धि कही, ज्ञान किरया वही, दूध साकर मिली रस घोल्यो ॥ सु० ॥ २ ॥ बिना सरधान के ज्ञान नहीं होत है, ज्ञान बिन त्याग नहीं होत साचो | त्याग बिन करम को नास नहीं होत है, करम नासे बिना धरम काचो ॥ तत्त्व सरधान पंचंगी संमत कह्यो, स्यादवादे करी बैन साचो ॥ मूल निर्युक्ति अति जाष्य चूरण जलो, वृत्ति मानो जिन धर्म राच ॥ सु० ॥ ३ ॥ उत्सर्ग अपवाद, अपवाद उत्सर्ग, उत्सर्ग अपवाद मन धारलीजो | अति उत्सर्ग उत्सर्ग है जैन में, अति अपवाद अपवाद की जो । एक जंग है जैन बाणी तने, सुगुरु प्रसाद रस घुंट पीजो | जब लग बोध नहीं, तत्त्व सरधान का, तब लग ज्ञान तुमको न लीजो ॥ सु० ॥ ४ ॥ समय सिद्धांतना अंग साचा सवी सुगुरु प्रसादथी पार पावे । दर्शन ज्ञान चारित करी संयुता, दाह कर कर्म को मोख जावे । जैन पंचगी की रीति जांजी सबी, कुगुरु तरंग मन रंग लावे । ते नरा ज्ञान को अंस नहीं ऊपनो, हार नर देह संसार धावे ॥ सु० ॥ ॥ तत्व सरधान बिन सर्व करणी करी, वार अनंत तुं रह्यो रीतो । पुण्य फल स्वर्ग में जोग उधो गिर्यो, तिर्यग्