________________
२४
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
बेर करी मुक स्वामी । जव दधि पार उतारा जी ॥ म० ॥ ३ ॥ पंच विघन जय रति तुम जीती। अरति काम विकारा जी || || || हास सोग मिथ्या सब बारी | नींद अत्याग उखारा जी ॥ म० ॥२॥ राग द्वेष घीन मोह अज्ञाना । अष्टादश रोग जारा जी ॥ म० ||६|| तुम ही निरंजन नये अविनाशी | अव सेवककी वारा जी || म० || ७ || हुं अनाथ तुम त्रिभुवननाथा । वेग करो मुऊ साराजी || म०॥ ॥ तुम पूरण गुण प्रभुता बाजे । तमराम आधारा जी ॥ म० ॥ एए ॥
॥ श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ मंदिर पधारो मारा पूज जो, ए देशी ॥ श्री सुपास मुऊ बीनती । अब मानो दिनदयाल जी । तरण तारण बिरुद बै जगत बच्बल किरपाल जी | श्री सु०॥१॥ अक्षर जाग अनंत में । चेतनता मुऊ बोर जी । करम नरम बाया महा जिम । कीनो तम महा घोरजी | श्रीसु० ॥२॥ घन घटा बादीत रवि जिसो । तिसो रह्यो ज्ञान उजास जी । किरपा करो जो मुऊ जणी । थाये पूरण ब्रह्म प्रकास जी | श्रीसु || ३ || बिन ही निमित्त न