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स्तवनावली।
अनंत अंत नहीं आयो । अब प्रनु काढ लीजो जी ॥ तुम० ॥६॥ आतम रूप दब्यो सब मेरो। अजित जिनेसर सेवक तेरो । अबतो फंद हरो प्रज्जु मेरो। निरनय थान दीजो जी॥ तुम०॥७॥
स्तवन बीजु ।
॥ राग कमाच ॥ जिन दर्शन मन नावरे चेतन ॥ टेक ॥ जितशत्रु नृप नंदन नीको, विजया अंकज थावरे ॥ चे ॥ १ ॥ तारंगे रंगरस जरी निरखी, हर्षित तनु मन थावरे ॥ चे ॥२॥ श्री जरतेश्वर चैत्य करावे, अजित बिंब तिहां गवेरे॥चे॥३॥ संख्यातीत उझार नये तब, संप्रति राज सुनावेरे ॥ चे ॥४॥करी उझार जिन चैत्य बिंबका, संमृति मूल खपावरे ॥ चे॥ ५॥ विक्रम सन शत उनतालीसें, नानावटी गोविंद कहावेरे ॥चे॥ ६॥ अजित बिंब अंगुल बारांका, थापि कर्म जरावेरे ॥ चे ॥ ७ ॥ चौबूक्य वंश विनूषण नरपति, कुमार नरीद करावेरे ॥ ॥चे ॥ तुंग चैत्य नविजन मन मोहे, यात्रा करो शुन्न नावरे ॥चे॥ ए॥ अष्टादश दूषण नही उनमें, चार अनंत