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१८ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतश्री अजितनाथ जिनस्तवन ।
स्तवन पहेढुं। सुणीयो जी करुणा नाथ भवधि पार कीजो जी,
ए देशी ॥ तुम सुणीयो जी अजित जिनेस नवोदधि पार कीजो जी। तु ॥ आंकणी ॥ जन्म मरण जल फिरत अपारा । आदि अंत नही घोर अंधारा । हुँ अनाथ उरमयो मऊधारा । टुक मुऊ. पीर कीजो जी। तुम ॥१॥ कर्म पहार कठन उखदा । नाव फसी अब कौन सहाई । पूर्ण दयासिंधु जगस्वामी। फटती उधार कीजो जी। तुम० ॥॥ चार कषाय के रस अतिजारे, वरवा अनंग जगत सब जारे । जारे त्रिदेव इंश फुन देवा। मोह उवार लीजो जी॥ तुम॥३॥ करण पांच अति तस्कर नारे । धरम जहाज प्रीति कर फारे । राग फांस मारे गर मारे । अब प्रनु फिरक दीजो जी ॥ तुम॥ ४ ॥ तृष्णा तरंग चरी अति नारी । बहे जात सब जन तन धारी। मान फेन अति उमंग चढ्यो है । अब प्रनु शांत कीजो जी ॥ तुम ॥ ५ ॥ लाख चउरासी जमर अतिजारी। मांहि फस्यो हुं सुझ बुझ हारी। काल