Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 12
________________ उपोद्घात अनादिकाल से प्रकृति स्वभाविक रूप से संसार भाव सहित ही है। जब उसे 'ज्ञानीपुरुष' प्राप्त हो जाते हैं, तब वह अध्यात्म में प्रवेश करता है लेकिन पूर्वजन्म में बंधी हुई सांसारिक स्वभावमय प्रकृति संयोगों के दबाव में, उदयमान हुए बिना नहीं रहेगी और ऐसे दुषमकाल में प्रायः विशेषरूप से उस प्रकृति में उदयकर्म मोक्षमार्ग की विमुखतावाले ही-मोक्षमार्ग में बाधकतावाले ही होते हैं। ऐसे काल में प्रकृति में गुथे हुए संसार-अभिमुख माल और खुद की आत्मसाधना के आध्यात्मिक पुरुषार्थ के बीच संघर्ष में खुद को मुक्ति दशा की विजय प्राप्ति की अनेक अनुभवी-समझ ज्ञानीपुरुष यहाँ पर स्पष्टीकरण करते हैं। १. आड़ाई : रूठना : त्रागा सीधा और सरल मोक्ष तो जो सीधे और सरल होते हैं उन्हीं को मिलता है। हर प्रकार से सीधे हो चुके ज्ञानीपुरुष के त्रिकाल सिद्ध वचन जिन्हें समझ में आ जाएँ, उनके लिए मोक्ष हाथभर की दूरी पर ही है। ज्ञानीपुरुष तो कहते हैं कि मोक्ष में जाते हुए आड़ाईयाँ ही बाधक हैं और सीधे हो जाएँगे तो परमात्मा पद प्राप्त हो जाएगा। लोगों की मार खाकर सीधे होने के बजाय खुद ही समझकर सीधे हो जाना क्या बुरा है? । खुद की आड़ाईयों को स्वीकार करने से वे चली जाती हैं और अस्वीकार करने से और अधिक मज़बूत होती हैं। इस प्रकार, आडाईयों को देखे-समझे और कबूल करे तभी आड़ाईयाँ जीती जा सकती हैं। खुद की आड़ाईयों को देखने का अधिकार है। वह भी, जब निष्पक्षपाती दृष्टि हो जाए तभी खुद की आड़ाईयाँ दिखाई देती हैं। जब कोई हमारी आड़ाईयाँ दिखाए तो वह अपनी आड़ाईयों की जाँच करने का और निकालने का स्कोप मिला कहा जाएगा। वर्ना फिर अगर दूसरों की आड़ाईयाँ देखीं, तो वह भी एक प्रकार की, खुद की आड़ाई ही मानी जाएगी। आड़ाईयाँ संपूर्ण रूप से चली जाएँ तब भगवान बन जाते हैं। खुद की आड़ाईयों को जब खुद ही देखने लगे, तभी से वे जाने लगती हैं।

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