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का अनुभव नहीं होता । कितने-कितने साधन करने के बाद भी उसका बंधन नहीं टूटता। उसमें कौन सी भूल रह जाती है ? मुक्त होने के लिए मुक्त होने के कारणों का सेवन करना चाहिए । जिन-जिन कारणों का सेवन करता है, उनसे उसे मुक्ति का अनुभव होता जाए, तभी ऐसा कहा जा सकता है कि उसके द्वारा सेवित कारण मुक्ति के लिए हैं पर ये तो मुक्ति के कारणों का सेवन करते हैं, फिर भी बंधन नहीं छूटता, ऐसा क्यों ?
ज्ञानीपुरुष ने संपूर्ण मोक्षमार्ग को देखा है, जाना है, अनुभव किया है और उस मार्ग को पार किया है इसीलिए उस मार्ग में बाधक दोष, उस मार्ग में आने वाले विघ्न-आने वाली अड़चनों या आने वाले खतरे बता सकते हैं। उस मार्ग पर चलनेवालों को, दोषों का किस प्रकार निर्मूलन किया जा सकता है, वे उसका पूर्ण ज्ञान, पूर्ण उपाय बता सकते हैं।
जगत् में जिन दोषों से बंधे हुए हैं ऐसे दोष, जो जगत् के लोगों की दृष्टि में नहीं आ सकते हैं उनकी वजह से लोग निरंतर इस प्रकार के दोषों से बंधकर, उन दोषों को पोषण देकर मोक्षमार्ग से विमुख ही रहे हैं ।
पूर्वकाल में हो चुके ज्ञानी मोक्षमार्ग में बाधक दोषों के बारे में लोगों को चेतावनी देकर गए हैं। लेकिन मोक्षमार्ग की प्राप्ति होने से पहले के बाधक दोष, मोक्षमार्ग की प्राप्ति होने के बाद बाधक होने वाले दोष, उन सभी का विस्तारपूर्वक विवरण उपलब्ध हो तो मोक्षमार्ग का सच्चा अभिलाषी साधक उस मार्ग को पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकता है, उस मार्ग में खुद प्रगति की ओर प्रयाण कर सकता है। फिर भी वास्तविक मार्ग तो ज्ञानीपुरुष के चरणों में रहकर ही पूर्ण करना होता है
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पहले के ज्ञानी कह गए हैं कि क्रोध - मान - माया - लोभ से बंधन है। उन दोषों के खत्म होने पर ही मुक्ति होगी। सभी दोष क्रोध-मानमाया- - लोभ में समा जाते हैं, लेकिन व्यवहार में वे दोष किस स्वरूप में बाहर आते हैं, किस स्वरूप में होते रहते हैं ? वह तो, ज्ञानीपुरुष के समझाने पर ही समझ में आ सकता है।
ज्ञानीपुरुष अर्थात् पूर्ण प्रकाश । उस प्रकट ज्ञान प्रकाश में सर्व दोषों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए ज्ञानीपुरुष के समक्ष आलोचना बहुत ही अनिवार्य हो जाती है। खुद को जहाँ-जहाँ दुःखमय परिणाम
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