Book Title: Aptvani 09
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 11
________________ का अनुभव होता है, उलझनें होती हैं, भ्रमित होता है, अनुभव की कोई झलक नहीं मिलती तब कौन सी ग्रंथि परेशान कर रही है, उन सब की ज़रा विस्तारपूर्वक ज्ञानीपुरुष के समक्ष आलोचना की जाए, तो सत्संग द्वारा ज्ञानीपुरुष भीतर के दोषों को कुरेदकर निकाल देते हैं। ज्ञानीपुरुष प्रकाश देते हैं, और उस प्रकाश में दोष देखे जा सकते हैं और दोषों से छुटकारा प्राप्त किया जा सके, वैसा मार्ग मिलता है। __मुख्य बात तो यह है कि ये दोष ग्रंथि के रूप में रहे हुए हैं। वे ग्रंथियाँ हमेशा 'अन्डरग्राउन्ड'- तहखाने में दबी हुई रहती हैं। संयोग मिलते ही, पानी छिड़कते ही जमीन में रही हुई गाँठों में से कोंपलें फूटती हैं और पत्ते व डालियाँ उगते हैं। उस पर से ग्रंथि का स्वरूप पहचाना जा सकता है कि गाँठ किस चीज़ की है, भीतर कौन सा रोग पड़ा हुआ है? लेकिन जब तक वह दोषों के स्वरूप को नहीं पहचानता, तब तक उन दोषों को पोषण मिलता ही रहता है। ज्ञानीपुरुष के सत्संग में आते रहने से, उनकी वाणी सुनते रहने से, बात को समझते रहने से कुछ जागृति उत्पन्न होती है और निजदोषों को पहचानने की, देखने की शक्ति आ जाती है। उसके बाद कोंपलों को उखाड़ने तक की जागृति उत्पन्न होने से क्रियाकारी रूप से पुरुषार्थ शुरू किया जाए तो उस गाँठ का निर्मूलन होता है। लेकिन वह सारी साधना ज्ञानीपुरुष की आज्ञापूर्वक और जैसे-जैसे ज्ञानीपुरुष उसे विस्तारपूर्वक दोषों की पहचान करवाते हैं, वैसे-वैसे उन दोषों का स्वरूप पकड़ में आता है, वह पता चलता है, फिर उन दोषों से मुक्त होने लगता है। इस प्रकार मोक्षमार्ग की पूर्णाहुति होती है। प्रस्तुत ग्रंथ में मोक्षमार्गियों के समक्ष प्रकट ज्ञानात्मस्वरूप संपूज्य दादाश्री की वाणी में से प्रकट हुए मोक्षमार्ग के बाधक कारणों का जो सुंदर गहरा हृदयभेदी विश्लेषण हुआ है, वह यहाँ पर संकलित हुआ है, जो साधक को प्रत्येक सीढ़ी पर गिरने से उबारने वाला सिद्ध होगा। ग्रंथ में सुज्ञ वाचक को क्षति-त्रुटि भासित हो तो वह ज्ञानीपुरुष की वाणी के कारण नहीं है, अपितु संकलन की कमी के कारण है। उसके लिए क्षमा प्रार्थना। - डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद

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