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अपभ्रंश भारती 19
सूरी, वैश्वानरी, मातंगी, वानरी, हरिणी, वाराही, तुरंगनी, बलशोषणी, गारुडी, कामरूपिणी, बहुरूपधारिणी, आशाली आदि। यहाँ सागर के मध्य वेलंधर नगर है, जहाँ राम की सेना से सेतु और समुद्र युद्ध करते हैं। पूर्ववर्ती रामायण-ग्रंथों के समान ‘पउमचरिउ' में रावण विभिषण को लात मारकर तिरस्कृत नहीं करता, प्रत्युत चन्द्रहास खड्ग लेकर उस पर टूटता है; और, विभीषण मणि-रत्नों से अलंकृत खम्भा उखाड़कर उस पर दौड़ पड़ता है। लवण-अंकुश प्रसंग में राम-लक्ष्मण द्वारा भी न जीती जा सकनेवाली जातियों और क्षेत्रों का नामोल्लेख हुआ है, जिन्हें लवण-अंकुश जीतते हैं।10
संख्या-परिगणन - ‘पउमचरिउ' की सोलहवीं सन्धि नीति-विद्या से सम्बद्ध है। स्वयंभदेव ने यहाँ केवल संख्या-परिगणन का सहारा लिया है - चार विद्याएँ, छः गुण, छः बल, सात प्रकृतियाँ, सात व्यसनों से मुक्त, छः महाशत्रु, अट्ठारह तीर्थ - इन नीतियों का पालनकर्ता है रावण। अणरण्ण से उत्पन्न अनन्तवीर्य नामक मुनि के समक्ष रावण एक व्रत लेता है -
जं मइँ ण समिच्छइ चारु-गत्तु। तं मण्ड लएमि ण पर-कलत्तु।18.3।
___ व्यतीत होते समय का परिज्ञान कवि स्वयंभू अपनी काल-ज्ञान-प्रतिभा द्वारा कराते हैं - प्राणी की आयु नाड़ियों के प्रमाण में परिमित कर दी गई है। एक हजार आठ सौ छियासी उच्छ्वासों के बराबर एक नाड़ी होती है। फिर नाड़ियाँ एक मुहूर्त जितने प्रमाण होती हैं। तीन हजार सात सौ तिहत्तर उच्छवासों का प्रमाण होता है। दो मुहूर्तों का आधा प्रहर प्रसिद्ध है। वह भी सात हजार पाँच सौ छियालीस उच्छ्वासों के बराबर होता है। इसी तरह नाड़ी-नाड़ी से घड़ी बनती है और चौंसठ घड़ियों से एक दिन-रात -
किण्ण णियच्छहों आउ गलन्तउ। णाडि पमाणेहिँ परिमिज्जन्तउ। अट्ठारह-सय-संख-पगासेहिँ। सिद्धेहिँ सडसिएहिँ ऊसासेंहिँ। णाडि-पमाणु पगासिउ एहउ। तिहिँ णाडिहिँ मुहुत्तु तं केहउ। सत्त सयाहिएहिँ ति-सहासँहिँ। अण्णु वि तेहत्तरि-ऊसासेहि। एक्कु मुहुत्त-पमाणु णिवद्धउ। दु-मुहुत्तेहि पहरद्ध पसिद्धउ। णाडिहें णाडिहों कुम्भु गउ चउसट्ठिहिँ कुम्भे हिँ रत्ति-दिणु एत्तिउ छिज्जइ आउ-वलु तें कज्जें थुव्वइ परम-जिणु ।50.7।
वस्तु-परिगणन - सहस्रकूट जिनभवन पहुँच राम एवं लक्ष्मण विश्वनाथ की वन्दना करते हैं; तदनन्तर भोजन-ग्रहण। लक्ष्मण की माँग पर वज्रकर्ण द्वारा प्रस्तुत किये
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