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अपभ्रंश भारती 19
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9. मुवउ मसाणि ठवेवि लहु, वंधव णिय-यरु' जंति। ____ वर लक्कड 'सुप्पउ भणई', जो सरिसा डझंति ॥9॥
अर्थ - मरे हुए (मृत व्यक्ति/सम्बन्धी) को श्मशान में ठेलकर बंधुबांधव अपने घर (चले) जाते हैं। सुप्रभ कहते हैं - (उनसे तो) वे लकड़ियाँ श्रेष्ठ हैं जो (उस मृतक के) साथ जलती हैं। (अर्थात् वे अन्त तक साथ देती हैं)।
1.C. णिय घरि यहाँ अर्थ में 'C' प्रति के इस शब्द को आधार माना गया है।
10. रोवतंहं थाहा-रवेण, पर यंसुवई गलंति।
जम मिलियइ ‘सुप्पउ भणई', इत्थु न काय उ भंति॥10॥
अर्थ - सुप्रभ कहते हैं (कि) - इसमें कुछ भी/कोई भी भ्रांति नहीं है कि जब यम/मृत्यु मिलती है तो धाह (चिल्लाहट) की आवाज के साथ रोते हुए सम्बन्धियों के केवल आँसू टपकते हैं।