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अपभ्रंश भारती 19
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73. 'सुप्पइ भाइ' रे धम्मियहो, पिछहु अवरु अणक्खु ।
जीव हणंतहं णरय गय, मणु मारंतहं मोक्खु ||72 ||
अर्थ
सुप्रभ कहते हैं
रे धार्मिकजनो ! दूसरी / अन्य अनोखी बात देखो जीव को मारनेवाला नरक को गया और मन को मारनेवाला मोक्ष !
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74. जइ दिंतहं 'सुप्पउ भणइ', संपय जाउ त जाउ ।
छुडु णिम्मलु धम्मेण सहु, घर मंडेवि जसु ठाइ || 73 ॥
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सुप्रभ कहते हैं
अर्थ यदि दान देते हुए संपत्ति जाती है तो जाये (खत्म होती है तो होवे ) | ( दान देनेवाले का) घर शीघ्र ही यश से सुशोभित होकर निर्मल धर्म के साथ स्थिर / अवस्थित होता है ।
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