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अपभ्रंश भारती 19
कवि पुष्पदंत
पुष्पदंत बरार के रहनेवाले थे। वे ब्राह्मण थे। उनका समय 10वीं शताब्दी के आस-पास माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय राष्ट्रकूट की राजधानी मान्यखेट में बिताया। पुष्पदंत की प्रसिद्धि का आधार उनकी रचना 'महापुराण' है। इसमें उन्होंने राम-कथा, कृष्ण-कथा और जैन-तीर्थंकरों के जीवन-चरित को शामिल किया है। कुछ आलोचकों का कहना है कि वाल्मिकी-व्यास की रामकथा-परंपरा के समानान्तर एक और दूसरी परंपरा थी। यह परंपरा गुणभद्र के उत्तर रामायण में पायी जाती है। पुष्पदंत की निम्नलिखित रचनाएँ हैं - महापुराण, जसहरचरिउ और णायकुमारचरिउ।
पुष्पदंत का काव्य रामकाव्य नहीं हो सका। पर कृष्ण की बाल-लीला का वर्णन उन्होंने बड़ी कुशलतापूर्वक किया है। पुष्पदंत के कृष्ण बहुत ही नटखट हैं -
धूलि धूसरेण वरमुक्कसरेण तिणा मुरारिणा। कीलारसवसेण गोवालय गोवी हियय-हारिणा। रंगतेण रमंतरमंतें मंथउ धरिउ भमंत अणंतें । मंदीरउ तोडिवि आवट्टिउं अद्ध-विरोलिङ दहिउं पलोट्टिउं। का वि गोवि गोविंदहु लग्गी एण महारी मंथणि भग्गी।85.6।
- धूल से सना हुआ वह मुरारी ब्रज की गोपियों के हृदय में रहनेवाला है। वह क्रीड़ा करता है और गोपियाँ उसकी क्रीड़ा देख-देखकर मुग्ध होती हैं। आँगन में कृष्ण दौड़ा फिर रहा है, कभी मथनी को लेकर दौड़ता है तो कभी दही की हाँडी तोड़ देता है, कभी दही पलट देता है। गोपियाँ कृष्ण की इस क्रीड़ा से नाराज नहीं होतीं, बल्कि इससे उन्हें सुख मिलता है।
काव्यों की उदात्त शैली, अलंकार-योजना एवं छंद-कौशल आदि गुण पुष्पदंत को श्रेष्ठ महाकवियों की श्रेणी में ले आता है। उपमा, रूपक, व्यक्तिरेक, भ्रांतिमान, यमक और श्लेष के प्रयोग बड़े ही चित्ताकर्षक हैं। लोकोक्तियों ने भाषा को आकर्षक बना दिया है।
हम देखते हैं कि स्वयंभू और पुष्पदंत अपभ्रंश के प्रमुख कवि हैं। उन्होंने अपभ्रंश भाषा को साहित्यिक गरिमा प्रदान की है। प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह के शब्दों में - ‘इस तरह स्वयंभू और पुष्पदंत दोनों ही कवि अपभ्रंश-साहित्य के सिरमौर हैं। यदि स्वयंभू में भावों का सहज सौन्दर्य है तो पुष्पदंत में बंकिम भंगिमा है, स्वयंभू की भाषा में प्रच्छन्न प्रवाह है तो पुष्पदंत की भाषा में अर्थगौरव की अलंकृत झाँकी। एक सादगी का अवतार है तो दूसरा अलंकरण का उदाहरण है।" अन्त में डॉ. शैलेन्द्रकुमार त्रिपाठी के शब्दों में कहा जा सकता है - "दरअसल साहित्य की दूसरी परम्परा का सूत्र या बीज अगर कहीं देखना हो तो संस्कृत से हटकर अपभ्रंश भाषा के इन