________________
38
अपभ्रंश भारती 19
कुसुमियफलियई णंदणवणाई अंकुरियई णवपल्लवघणाई
कुसुमियफलियई णंदणवणाई। जहिं कोइलु हिंडइ कसणपिंडु
वणलच्छिहे णं कज्जलकरंडु। जहिं उड्डिय भमरावलि विहाइ
पवरिंदणीलमेहलिय णाइ। ओयरिय सरोवरि हंसपंति
चल धवल णाई सप्पुरिसकित्ति। जहिं सलिलई मारुयपेल्लियाई
रविसोसभएण व हल्लियाई। जहिं कमलहं लच्छिइ सहुँ सणेहु
सहं ससहरेण वड्डउ विरोह। किर दो वि ताई महणुब्भवाई
जाणंति ण तं जडसंभवाई।। जहिं उच्छुवणई रसगब्भिणाई
णावइ कव्वई सुकइहिं तणाई। जुज्झंतमहिसवसहुच्छवाई
मंथामंथियमंथणिरवाई। चवलुद्धपुच्छवच्छाउलाई
कीलियगोवालई गोउलाई। जहिं चउरंगुल कोमलतणाई
घणकणकणिसालई करिसणाई। घत्ता - तहिं छुहधवलियमंदिरु णयणाणंदिरु णयरु रायगिहु रिद्ध।
महाकवि पुष्पदंत, महापुराण, 1.12 __जिसमें अंकुरित, नये पत्तों से सघन फूलों और फलोंवाले नन्दनवन हैं। जिसमें काले शरीरवाला कोकिल घूमता है मानो जो वनलक्ष्मी के काजल का पिटारा हो, जहाँ उड़ती हुई भौंरों की कतार ऐसी शोभित होती है जैसे इन्द्रनील मणियों की विशाल मेखला हो। सरोवरों में उतरी हुई हंसों की कतार ऐसी मालूम होती है जैसे सज्जन पुरुष की चलती-फिरती चंचल कीर्ति हो। जहाँ हवा से प्रेरित जल ऐसे मालूम होते हैं जैसे सूर्य के शोषण के डर से काँप रहे हों। जहाँ कमल लक्ष्मी से स्नेह करते हैं लेकिन चन्द्रमा के साथ उनका बड़ा विरोध है। यद्यपि दोनों समुद्रमन्थन से उत्पन्न हुए हैं लेकिन जड़ (जड़ता और जल) से पैदा होने के कारण वे इस बात को नहीं जानते। जहाँ ईखों के खेत रस से परिपूर्ण हैं, मानो जैसे ककवियों के काव्य हो। जहाँ लड़ते हुए भैंसों और बैलों के उत्सव होते रहते हैं, जहाँ मथानी घुमाती हुई गोपियों की ध्वनियाँ होती रहती हैं, जहाँ चंचल पूँछ उठाये हुए बच्छों का कुल है, और खेलते हए ग्वालवालों से युक्त गोकुल है। जहाँ चार-चार अंगल के कोमल तण हैं और सघन दानों वाले धान्यों से भरपूर खेत हैं।
घत्ता - उस मगध देश में चूने के धवल भवनों वाला नेत्रों के लिए आनन्ददायक राजगृह नाम का समृद्ध नगर है।
अनुवादक - डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन