________________
अपभ्रंश भारती 19
109
1. एक्कहि घरे वद्धावणउ, अण्णहे घरे धाहहि रोविज्जइ। __ परमत्थे 'सुप्पउ भणई', किम वइराउ भाउ नउ किज्जइ॥1॥
अर्थ - एक घर में बधाई (होती) है, अन्य के घर में धाह की आवाज के साथ रोया जाता है। सुप्रभ कहते हैं - (ऐसा देखकर भी) परमार्थ के लिए वैराग्य-भाव क्यों नहीं किया जाता?
2. 'सुप्पउ भणई' रे धम्मियहु, खसहु म धम्म-णियाणि।
जे सुरूग्गमि धवलहरे, ते अंथवणि मसाणि ।।2।।
___ अर्थ - सुप्रभ कहते हैं - हे धार्मिकजनो ! धर्म-रज्जु के बंधन से स्खलित मत होवो। जो (लोग) सूर्य-उदय (के समय) पर, राजमहल में होते हैं वे सूर्यास्त (के समय) में श्मशान में (देखे जाते हैं, अर्थात् मरण को प्राप्त हो जाते हैं)।
णियाण → न्याण = रज्जु (रस्सी) का बंधन