Book Title: Apbhramsa Bharti 2007 19
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 88
________________ अपभ्रंश भारती 19 79 अन्यत्व-भावना अर्थ - (यदि) हड्डियों के समूह से बने हुए शरीरों (द्वारा) सम्पूर्ण मजबूत पृथ्वी (भी) जला दी गयी है। पीते हुए जल युक्त सागर सुखा दिया गया है। (ऐसा लगता है मानो) महान सुमेरु पर्वत ही उसके अंतर में स्थित ( समाहित ) है । प्रियजनों के विरह से करुणापूर्वक रोते हुए आँसुओं (के द्वारा) समुद्र ही भर दिया गया है। ( तो भी यह शरीर अपना नहीं बना है अन्य ही रहता है) मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ)।।7।। अन्यत्व-भावना अर्थ - यदि (आत्मा) लोहे की मंजूसा-पिटारी में शोभित होकर -रहकर भी, घोड़े, हाथी, योद्धाओं के द्वारा (रोकी जाती हुई) भी जो नहीं रोकी जाती । तथा विष्णु, महादेव, ब्रह्मा, इन्द्र, वरुण, कुबेर आदि (छिपाना चाहे तो भी नहीं छिपायी जाती है। तीनों लोकों में समीपवर्ती मरणभय से किसी के द्वारा भी रक्षा नहीं की जा सकती है। मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ) ॥४॥ एकत्व-भावना अर्थ - जीव (व्यक्ति) अकेला ही मरता है, अकेला ही उत्पन्न होता है, रोग, शोक और अनेक व्याधियों से दुःखी होता है। मूढदृष्टि (जीव ) कर्मवश अकेला ही संसार रूपी जंगल में भ्रमण करता है और व्याकुल होता है। (और) अकेला ही (जीव) तपश्चरणरूपी ताप को सहता है। और (तप के द्वारा) (जीव) ज्ञानी परमात्मा होता है (परमपद को प्राप्त करता है)। मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ) ॥9॥ एकत्व - भावना अर्थ - हे जीव ! (तूने) भोजन, खान-पान ( के द्वारा), वस्त्रादि (के द्वारा), सुगंधित - लेप (के द्वारा) तथा पुष्पाभरणों द्वारा जन्मपर्यन्त ( आजन्म ही) इस शरीर का परिपोषण किया गया है तो भी यह शरीर तेरा नहीं है। वंशोत्पत्ति को कैसे रोक सकते हो ? क्या जीव दुखोत्पादक नहीं होता है ? मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ) ॥10॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156