Book Title: Apbhramsa Bharti 2007 19
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
84
अपभ्रंश भारती 19
धर्म-भावना खंति मूलु मद्दव गुण जुत्तउ अज्जव संजमवाय णिरुत्तउ। सच्च सउच्चालंकरि वंभचेर' अकिंचणत्तव भूसिउ। दहलक्खणु सिवसुह जणणु करहु धम्मु वियहु जिणभासिउ।
णविवि चलण मुणिसुव्वयहो॥19॥
बोधिदुर्लभ-भावना देउ जिणिंदु धम्मु दय सारउ रिसिगुरु विसयकसायणिवारउ। वोहिलाहु सिवगयगमणु अंतयालि संलेहणमरणें। जिणगुणसंपय सुहु हवउ दंसण णाण चरण तवचरणं।
णविवि चलण मुणिसुव्वयहो॥20॥
बोधिदुर्लभ-भावना इय वारह भावण भावंतह परमु चित्ति वइराउ धरंतहं। धम्में मणु णिच्चलु हवइ सुक्कझाण परिणइ संपज्जइ। पर परत्तसंभावणा' लहिज्जइ. अप्पे अप्पसरूउ मुणिज्जइ।
णविवि चलण मुणिसुव्वयहो॥21॥
ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार-परिचय एवं कामना एहरासु जिणवर पयभत्ते विरइउ कुंभिनयरि णिवसंते। जोगदेव पंडिउ पुर उत्तें' विसयसेण मुणिवर पयभतें। पढइ सुणइ जो सद्दहइ सो णरु सिव सुह लहइ पयत्तें। णविवि चलण मुणिसुव्वयहो।।22॥
इति श्री मुनिसुव्रतानुप्रेक्षा

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156