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अपभ्रंश भारती 19
मूलतः तो 'A प्रति' ही हमारी आधार एवं आदर्श प्रति है, यहाँ इसी का मूल पाठ प्रकाशित किया जा रहा है, किन्तु कुछ स्थानों पर B और C प्रति का सहारा लिया गया है। इन स्थानों पर A प्रति में अंकित शब्द सार्थक नहीं थे, उनसे प्रसंग एवं अर्थ दोनों की संगति नहीं हो रही थी जबकि 'B और C प्रति' में उन स्थानों पर अंकित शब्दों से प्रसंग व अर्थ दोनों की सहज संगति व निष्पत्ति हो रही थी ।
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उल्लेखनीय है कि उपलब्ध प्रतियों के पाठ समान नहीं हैं। लगभग सभी प्रतियों में दोहों का क्रम भिन्न है। हमारी आधार प्रति A में कुल 79 दोहे हैं। इनमें पाँच स्थानों पर युग्म ( दो दोहे एकसाथ ) हैं ।
• दोहा संख्या 7 पर युग्म है पर क्रम संख्या एक ही ( 7 ) दी गई है।
• दोहा क्रमांक 18 के बाद दोहा क्रमांक 20 है। क्रमांक 19 का दोहा नहीं है।
• क्रमांक 30 के बाद दो दोहों पर क्रमांक 31, 31 दिया गया है। जो एक ही दोहे की पुनरावृत्ति है, इसलिए इनमें से एक ही दोहा प्रकाशित किया गया है।
• इसी प्रकार क्रमांक 32 के बाद क्रमांक 33, 33 भी दो दोहों पर अंकित है। • क्रमांक 64 तथा 75 पर भी युग्म हैं।
इस प्रकार इस पाण्डुलिपि में क्रमांक 75 तक के दोहों में कुल 79 दोहे निबद्ध हैं। यहाँ 78 दोहे प्रकाशित हैं।
इससे पूर्व भी इस रचना का प्रकाशन हो चुका है। कहीं केवल मूल दोहों का प्रकाशन किया गया है तो कहीं अर्थ सहित। अब तक जो दो-चार प्रकाशन देखने में, आये उनमें और हमारी A प्रति के मूल दोहों के शब्दों में, भाषा में, क्रमांक में बहुत अन्तर-भेद दिखाई दिये । जो अर्थ दृष्टिगत हुए वे संस्कृत छाया को आधार बनाकर किये गये थे, जिससे रचना का भाव, मूल हार्द गौण हो गया । यहाँ प्रस्तुत अर्थ अपभ्रंश भाषा के मौलिक आधार से, उसकी मूल प्रवृत्ति मूल संरचना के आधार से किया गया है। प्रत्येक भाषा की अपनी मौलिकता होती है, वही उसकी विशेषता होती है। अपभ्रंश भाषा इसका अपवाद नहीं है । यद्यपि 'अपभ्रंश' एक लोकभाषा है, किन्तु इसमें प्रचुर मात्रा में साहित्य-रचना हुई है । साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपभ्रंश साहित्य का निर्माण हुआ है । पाँचवीं शताब्दी ईस्वी से पन्द्रहवीं शताब्दी ईस्वी तक लगभग एक हजार वर्ष का काल इस भाषा की समृद्धि का काल था जिसमें पुष्कल मात्रा में साहित्य-रचना हुई ।
इस कृति के रचनाकार आचार्य सुप्रभ के संबंध में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। डॉ. हरिवंश कोछड़ आचार्य सुप्रभ का समय 11वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी