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अपभ्रंश भारती 19
अक्टूबर 2007-2008
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सुप्पय दोहा
रचयिता - आचार्य सुप्रभ
अर्थ - प्रीति जैन
'सुप्पय दोहा' आचार्य सुप्रभ द्वारा अपभ्रंश भाषा में रचित एक छोटी एवं सारगर्भित रचना है। साहित्य-जगत में यह रचना 'वैराग्यसार' नाम से भी जानी जाती है। जिस पाण्डुलिपि को हमने आधार बनाया है और आदर्श माना है उसमें यह रचना 'सुप्पय दोहा' के नाम से लिपिबद्ध है अतः यहाँ यह इसी नाम से प्रकाशित की जा रही है।
इस कृति की अनेक प्रतियाँ उपलब्ध हैं। शास्त्र-भण्डारों में प्रायः इसकी एक से अधिकं प्रतियाँ मिल जाती हैं। रचना छोटी है इसलिए गुटकों में संगृहीत है। हमारी आधार एवं आदर्श प्रति/पाण्डुलिपि दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के पाण्डुलिपि भण्डार में गुटका संख्या 55, वेष्टन संख्या253, पृष्ठ संख्या 34 से 39 में लिपिबद्ध है। इसी पाण्डुलिपि भण्डार में इस कृति की दो और प्रतियाँ हैं - (2) गुटका संख्या-46 वेष्टन, संख्या-244 तथा (3) गुटका संख्या-5, वेष्टन संख्या-203।
हमने अपनी आधार प्रति गुटका संख्या-55, वेष्टन संख्या-253 को 'A' प्रति निर्देश किया है और गुटका संख्या-46, वेष्टन संख्या-244 को 'B' प्रति तथा गुटका संख्या-5, वेष्टन संख्या 203 को 'c' प्रति निर्देश किया है। 'B' प्रति का गुटका अत्यन्त क्षतिग्रस्त है।