Book Title: Apbhramsa Bharti 2007 19
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 114
________________ अपभ्रंश भारती 19 105 ईस्वी के मध्य मानते हैं। अन्य विद्वान व भाषा-शास्त्री भी भाषा की दृष्टि से यही समय मानते हैं। इस रचना में कवि ने सर्वत्र सामान्य मानवीय धर्म का विवेचन किया है। मूलतः यह रचना मानव मूल्यों एवं वैराग्य भाव पर आधारित है। सम्भवतः इसकी विषय-वस्तु के कारण ही इसे 'वैराग्यसार' कहा जाने लगा हो! किसी विशिष्ट धर्म से न जोड़कर मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में इस रचना का रसास्वाद किया जाना अपेक्षित है। तब शंकाओं का निराकरण, विचारों का परिष्कार, रस की द्विगुणता और भावों की निर्मलता सहज ही संभव है। इस रचना में संसार की अस्थिरता, मृत्यु की आकस्मिकता व अनिवार्यता, सांसारिक संयोगों व सम्बन्धों की विद्रूपता, आत्मा का अन्यत्व एवं एकत्व, मनुष्य जीवन की दुर्लभता, परोपकार, दान, सदाचार आदि बिन्दुओं पर ध्यान आकर्षित किया गया है। संसार एवं सांसारिक विषयों की अस्थिरता बताते हुए कवि कहते हैं - हे जिय! देख, जो प्रातः राजभवन में राज कर रहा था वह संध्या-समय श्मशान में पहुँच गया (अर्थात् मृत्यु को प्राप्त हो गया, (2) (4) (6) (61)। अरे! सूर्य और चन्द्रमा भी अस्त होते हैं तब बता, यहाँ कौन स्थिर है (3)? जिस देह के कारण घोर पाप करके धन संचय करता है वह देह और वह धन दोनों ही नाशवान हैं। अस्थिर हैं (31) (33)। जब सब नश्वर हैं तब पाप करके धन का संचय क्यों करता है (33 II) (31)? यह संसार एक विडम्बना है, यहाँ कहीं सुख है तो कहीं दुःख; कहीं खुशी कहीं गम (1) सर्वत्र विचित्रताएँ - विभिन्नताएँ (4) (6) देखने को मिलती हैं। यहाँ परस्पर विरोधी वस्तुएँ भी एक साथ दिखाई देती हैं - (25)। मृत्यु की आकस्मिकता एवं अनिवार्यता बताते हुए कवि कहते हैं - सारा संसार मृत्यु से पीड़ित है (12), मृत्यु धन-यौवन किसी को नहीं देखती (48), वह कब आ पहुँचे, पता नहीं (7) (63)। समय कम है, जैसे अंजुरि में भरा पानी झर जाता है वैसे ही आयु भी रीत जाती है (21)। सांसारिक संयोगों व सम्बन्धों की विद्रूपता बताते हुए कवि ने कहा है - तू जिस परिवार व कुटुम्ब के पालन-पोषण के लिए अनीति-अकार्य करता है वे ही तुझे नरक ले जाते हैं क्योंकि उनके लिए तू कार्य-अकार्य को अनदेखा कर देता है (51)। तू इन्द्रियों में आसक्त रहता है (60), घर-परिवार की चिन्ता करता हुआ छटपटाता

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