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अपभ्रंश भारती 19
अर्थात् जिस समय कण्ह डोमिन से विवाह करने चला, उस समय भव एवं निर्वाण - दोनों के पटह और मादल निनादित हुए। मन एवं पवन के करंग एवं कशाला बजने लगे। डोमिन का पाणिग्रहण कर कण्ह ने अपने जन्म का अन्त कर डाला। दहेज के रूप में उसने अनुत्तर धाम प्राप्त कर लिया, फलतः अब वह सदा आनन्दमग्न रहने लगा। इसी प्रकार शबरपा ने अन्त्येष्टिक्रिया के विवरण से भी अपनी उपलब्धि प्रस्तुत की। यहाँ चंचाली (अर्थी), दाहक्रिया, गृध्र एवं सियारों का रुदन, दसों दिशाओं में बलि का पिण्डदान - और इस प्रकार साधक शबर का शबरपना मिट जाएगा।
उस समय समाज में जीविका के क्या साधन थे - इस पर भी उनकी रचनाओं से पता चलता है। विरूपा में अपनी साधना-पद्धति का परिचय देते हुए मद की तैयारी तथा उसके विक्रय का वर्णन करने में लग जाते हैं। इससे पता चलता है कि उन दिनों इस प्रकार की कोई जीविका चलती रही होगी। वे कहते हैं कि एक ही कलाली दो घरों का सम्बन्ध जोड़ दिया करती है और चिकने वल्कल द्वारा मदिरा को बाँध देती है जिसको देखते ही मद को क्रय करनेवाला आप से आप आ जाता है और फिर वहाँ से वह निकल नहीं पाता। एक ही छोटी सी गगरी में पतली-सी नली लगी रहती है, इस कारण बड़े शान्त भाव से उसे चलाना कहा जाएगा।
इसी प्रकार सिद्ध शान्तिपा ने अपनी एक चर्या के द्वारा धुनियाँ के हाथ धुनी जानेवाली रूई के महीन अंशों का स्मरण दिलाया है। उनका कहना है कि वे रूई को उसके सूक्ष्म से सूक्ष्मतर
को तबतक धनता चला गया जबतक कुछ भी शेष नहीं रह गया। इस प्रकार रूई को शन्य तक पहुँचा दिया तथा उसे जमा किया और स्वयं अपने को ही निःशेष कर डाला। सिद्ध तंतीया ने तो स्वयं अपने वयनजीवी कार्य-पद्धति की ओर संकेत किया है। यह वयन-कार्य अनाहत शब्द . है। इसी प्रकार सिद्ध कण्हपा अपनी डोमिन से कहते हैं कि अब तू अपनी ताँत बेच दे और चंगेले को भी अपने पास न रख। इससे चंगेली, सूप आदि से बीनने का पता चलता है। इन तमाम जीविका के उपायों का उतना उल्लेख नहीं मिलता जितना नावों के खेने का। उदाहरण के लिए सिद्ध कामलिया की चर्या ली जा सकती है जिससे इसका पता चलता है। उन्होंने कहा है करुणा की नाव सोने से भरी हुई है और इसमें चाँदी रखने के लिए कोई जगह नहीं है। अब तू खूटे को उखाड़कर बँधे हुए रस्से को खोल दे और सद्गुरु से पूछकर आगे बढ़ जा। इसी प्रकार डोंबीपा ने भी कहा है - गंगा व यमुना के मध्य नाव चलती है। वहाँ रहनेवाली डोमिन जोगी को सुविधा के साथ पार करा देती है। सिद्ध सरहपाद भी काया को एक छोटी नाव कहते हैं। इसका केरूवार मन है। ये तो हुए जीविका के साधन।
सम्प्रति, समाज में प्रचलित मनोरंजन के प्रकारों पर आएँ। सिद्ध भूसुकपाद ने मनोरंजन के साधनों में हरिण के आखेट का वर्णन किया है जिससे पता चलता है कि तदर्थ कैसे-कैसे और क्या-क्या किया जाता रहा होगा। सिद्ध भूसुकपाद ने हिरण के आखेट के लिए कहीं हँकवा की
अंशों