Book Title: Apbhramsa Bharti 2007 19
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती 19
10. किरेर हिर किलार्थे वा ।
प्राकृत - व्याकरणम्, 8.2.186
11. इरकिरकिला अनिश्चयाख्यानेषु । प्राकृतप्रकाशः, 8.6, रचयिता - वररुचि, कुलपतेः डॉ. मण्डनमिश्रस्य प्रस्तावनया समलङ्कृत, संपादक आचार्य बलदेव उपाध्याय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, द्वितीय संस्करण, 1996
12. आम अभ्युपगमे ।
प्राकृत व्याकरणम्, 8.2.177
13. एवार्थे एव्व।
प्राकृतव्याकरणवृत्तिः, 3.2.18, सम्पादक पण्डित जगन्नाथ शास्त्री, साहित्याचार्य, प्रकाशक चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, बनारस, संवत् 2007।
14. मामि हला हले सख्या वा ।
प्राकृत व्याकरणम्, 8.2.195
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15. अम्मो आश्चर्ये ।
प्राकृत - व्याकरणम्, 8.2.208
16. मिव पिव विव व्व व विअ इवार्थे वा ।
प्राकृत - व्याकरणू, 8.2.182
17. थू कुत्सायाम् ।
प्राकृत - व्याकरणम्, 8.2.200
अविमारकम्, चतुर्थोऽङ्कः, पृ. 117
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19. हद्धी निर्वेदे ।
18. हद्धि खेदानुतापयोः ।
प्राकृतसर्वस्वम्, 8.8, रचयिता - मार्कण्डेय, संपादक - डॉ. कृष्णचन्द्र आचार्य, प्रकाश
प्राकृत टैक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद- 9, सन् 1968।
प्राकृत - व्याकरणम्, 8.2.192
20. हु खु निश्चयवितर्कसंभावनविस्मये।
प्राकृत व्याकरणम्, 8.2.198
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