Book Title: Apbhramsa Bharti 2007 19
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 35
________________ अपभ्रंश भारती 19 अर्थात् सुमति देनेवाले हे सुमति स्वामी, आपकी जय हो। पउमचरिउ में जिनेन्द्र की स्तुति करनेवालों में रावण18, राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, इन्द्र, सुग्रीव आदि प्रमुख हैं। ये सभी स्तुतियाँ जिनमन्दिर में जाकर जिनप्रतिमा के समक्ष की गई हैं। केवल चौदहवीं सन्धि में, रावण जलक्रीड़ा के उपरान्त नदी किनारे बालुका की वेदी बनाकर उस पर जिनप्रतिमा स्थापित कर 'जिनदेव' की स्तुति-पूजा करता है। स्तुति से पूर्व विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चा का भी उल्लेख किया गया है। स्तुति से पूर्व या बाद में तीन बार जिनप्रतिमा की प्रदक्षिणा करने का भी उल्लेख है।26 'जिन' की पूजा का उल्लेख पउमचरिउ में कई बार आता है। फल-फूल, दीप, नैवेद्य, घण्टा-ध्वनि, मणि-रत्न आदि भेंट से यह पूजा की जाती है। पूजा के बाद स्तुति प्रारंभ होती है। कहीं-कहीं स्तुति दी गई है, कहीं स्तुति का उल्लेख मात्र किया गया है। चौदहवीं सन्धि में रावण पहले जलक्रीड़ा करता है, तत्पश्चात् बालुका की वेदी बनाकर उस पर जिनप्रतिमा स्थापित कर जल, दूध, मणिरत्न, विलेपन, दीप, धूप, नैवेद्य, पुष्प आदि से पूजा करके फिर गायन प्रारंभ करता है। ___ इकहत्तरवीं सन्धि में भी रावण शान्तिनाथ की पूजा करता है। इस प्रसंग में कवि ने जिनालय का, जिनेन्द्र के अभिषेक का एवं पूजा का सुविस्तृत तथा अलंकृत वर्णन किया है। उदाहरण के लिए 'जिन' को नैवेद्य अर्पण करते हुए लिखता है - रावण ने नैवेद्य से पूजा की जो गंगा-प्रवाह की तरह दीर्घ, मुक्ता-समूह के समान स्वच्छ, सुन्दरी के समान सुमधुर, उत्तम अमृत रस के समान सुरभित, स्वजन के समान स्नेहिल, उत्तम तीर्थंकर की तरह सिद्ध, सूरत के समान तिम्मण (स्त्री, पक्वान्न) से युक्त थी। इस वर्णन में उपमा तथा श्लेष दोनों अलंकारों का प्रयोग किया गया है। पूजा के उपरान्त रावण दोधक, भुजंगप्रयात तथा नाराच छन्दों में 'जिन' की सुदीर्घ स्तुति करता है। यह पउमचरिउ में रची गई स्तुतियों में सबसे लम्बी स्तुति है। स्तुतियों के सन्दर्भ में स्वयम्भू ने संगीतशास्त्र को भी जोड़ा है। बत्तीसवीं सन्धि में वन में भ्रमण करते हुए राम, लक्ष्मण और सीता कुलभूषण और देशभूषण मुनियों की पूजा करके मधुर गायन प्रारंभ करते हैं। इस अवसर पर राम सुघोष नाम की वीणा बजाते हैं, लक्ष्मण लक्षणों से युक्त गीत गाते हैं तथा सीता भरतमुनि द्वारा नाट्यशास्त्र में उल्लिखित नव रस, आठ भाव, दस दृष्टियों और बाईस लयों से युक्त ताल-विताल पर नृत्य करती हैं। तेरहवीं सन्धि में बालि पर उपसर्ग करने के कारण रावण को पश्चात्ताप होता है। बलि से क्षमा माँगने के बाद रावण भरत द्वारा बनाये गये जिनालय में जाकर 'जिन भगवान की पूजा करके वीणावादन करते हुए मधुर गन्धर्व गान गाता है जो मूर्छना, कम्प, क्रम, त्रिग्राम और सप्तस्वरों से युक्त था। इस प्रसंग में भी पूजा-अर्चा तथा गंधर्व गायन का वर्णन अलंकृत शैली में किया गया है। सामान्यतः भगवान की स्तुति करते हए भक्त ईश्वर के गुणगान के साथ-साथ अपने लिए भी कुछ न कुछ याचना करता है। पउमचरिउ में आई हुई स्तुतियों में भक्त की लौकिक

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