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18 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय उन्हे सर्वत्र निन्दा, अपमान और तिरस्कार ही मिलता है। वे अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगो से सदैव पीडित बने रहते हैं। अपना उदर-पोषण करने में भी सामर्थ्यवान नहीं बनते।।
अस्तु ! हे भव्यात्माओ यह हिंसा का भीषण फल-विपाक है, जो भव-भवान्तरो तक जीव को भोगना पडता है। यह अल्प सुख और भीषण दु खवाला है। यह महाभयानक, दारुण, कठोर, भयकर असाता पैदा करने वाला है। बहुत लम्बे काल तक भोगने पर इससे छुटकारा मिलता है। यह घृणारहित, नृशंस, भयानक, त्रासजनक एव अन्याय रूप करुणाहीन मनुष्यो का कार्य है। यह मरण और दीनता का जनक है। अतएव इस हिसा का त्याग कर परम अहिंसा धर्म का सेवन करना चाहिए।
अहिसा समस्त प्राणियो के लिए शरणभूत है। यह सुख का द्वार है। यही उत्तम पुरुषो द्वारा आचरणीय है। इसी का अनुपालन कर उत्तम मोक्ष मार्ग की प्राप्ति होती है। अतएव धैर्य एव विवेक सम्पन्न होकर अहिंसा की आराधना करने वाला अत्यन्त आनन्द को उपलब्ध कर लेता है ।28
भगवान् महावीर की धाराप्रवाह दिव्य देशना चल रही है। विशाल जन-समूह, देव-समूह, तिर्यंच, पशु-पक्षी एकाग्रचित्त से देशना को श्रवण करने मे निरत है। अपूर्व शाति का निर्झर प्रवाहित हो रहा है।
मेला . यज्ञ का मध्यम पावा की वह धर्म-धरा, जहाँ एक ओर सर्वज्ञ महाप्रभु महावीर के पदार्पण से धर्ममय बन गयी वहीं दूसरी ओर धनाढ्य सोमिल ब्राह्मण द्वारा यज्ञ का आयोजन करवाने से सैकडो विद्वानो की सम्मिलन नगरी बन गई है।
मध्यम पावा का निवासी सोमिल ब्राह्मण उस समय का ख्यातिप्राप्त धनाढ्य गृहस्थ था। उसने एक दिन अपने मन मे चितन किया कि मुझे यहाँ पर विराट् यज्ञ का आयोजन करवाना है। उसमें सुदूर प्रान्तों से उच्चकोटि के विद्वान पण्डितो को बुलाकर एक यज्ञ मेला-सा लगाना है। यही चितन कार्य रूप मे परिणत करने के लिए सोमिल कटिबद्ध हो गया। इसके लिए खूब छानबीन करने लगा। अनेक व्यक्तियो से सम्पर्क साधकर दूर-दूर रहने वाले विद्वान पडितों का एक सूचीपत्र तैयार किया और मन में निश्चय किया कि ऋतुराज बसत मे ही यह यज्ञ मेला लगवाना है। विचार-विमर्श के पश्चात् उसने वैशाख शुक्ला एकादशी का दिन निर्धारित किया कि इसी दिन विराट् यज्ञ का आयोजन करवाऊँगा।" तिथि निर्धारण करने के पश्चात् उसने विद्वान् पण्डितो को निमत्रण भेजना प्रारम्भ किया। (क) तिर्यच-पशु-पक्षी आदि