Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 143
________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 151 बाँध दी है, तब अभय कुमार उस बाला को लेकर श्रेणिक के पास पहुंचा । राजा श्रेणिक ने पूछा कि क्या मुद्रिका चुराने वाला चोर मिला? तब अभय कुमार ने कहा कि मुद्रिका चुराने वाली यह बाला है परन्तु राजन् । उसने मुद्रिका के साथ तुम्हारा चित्त भी चुरा लिया है, मुझे ऐसा लगता है। राजा ने कहा- दुष्कुल मे से भी स्त्री रत्न ग्रहण करना चाहिये। इस प्रकार कहकर राजा ने दुर्गन्धा के साथ विवाह किया और उस पर अनुराग होने से उसको पटरानी भी बनाया। एक बार राजा अपनी रानियो के साथ खेल खेल रहा था और उसमे शर्त रखी कि जो हारेगा, उसकी पीठ पर जीतने वाला बैठेगा। इस प्रकार शर्त रखने के पश्चात् खेल चलने लगा। तब यदि कुलवान् नारियॉ जीतती तो वे राजा की पीठ पर वस्त्र डाल देती लेकिन जैसे ही यह गणिका-पुत्री दुर्गन्धा जीती, वह नि शक होकर उस पर चढ गई। उस समय श्रेणिक राजा को हंसी आई। दुर्गन्धा ने हसी का कारण पूछा। राजा ने उसके पूर्व भव से लेकर अद्यतन पर्यन्त समस्त वृत्तान्त जैसा भगवान् से सुना, वैसा बता दिया। उसे श्रवण कर दुर्गन्धा को वैराग्य आया। उसने दीक्षा ग्रहण की। __“जैन कथाऍ मे भी दुर्गन्धा की शादी 15-16 के पश्चात् बतलाई हैं लेकिन भगवान् के केवलज्ञान के पश्चात् 15 वर्ष तक श्रेणिक जीवित नहीं रहा अतएव आठ वर्ष मे विवाह की धारणा ठीक लगती है। त्रिषष्टिशलाका पुरूषचारित्र पृ 151-52 LXXII रोहिणेय रोहिणेय भगवान् के केवलज्ञान के पश्चात् राजगृह के प्रथम चातुर्मास मे ही दीक्षित हुआ। ऐसा लगता है क्योकि त्रिषष्टि शलाका पुरूषाकार ने सर्ग 11 मे रोहिणेय की दीक्षा के पश्चात् अभय कुमार का हरण बतलाया है। अभय कुमार हरण से पहले श्रावकव्रतो को प्रथम चातुर्मास मे ही ग्रहण कर चुका था। उसका हरण पहले चातुर्मास के पश्चात् हुआ क्याकि प्रथम चातुर्मास में उसके हरण का कोई उल्लेख नहीं। गोभद्र सेठ की दीक्षा के समय अभयकुमार नहीं था। उसका हरण हो गया था, ऐसा उल्लेख मिलता है। गोभद्र सेठ की दीक्षा की घटना प्रथम चातुर्मास के पश्चात् की लगती है क्योकि जिस समय अभय कुमार का हरण हुआ उस समय कोशाम्बी के युवराज उदयन का भी चण्ड प्रद्योतन द्वार हरण कर रखा था, ऐसा त्रिषष्टिशलाका पुरूप में उल्लेख है। युवराज उदयन, शतानीक के राजा रहते ही चण्डप्रद्योतन द्वारा हरण कर लिया गया था। शतानीक की मृत्यु भगवान् के तृतीय चातुर्मास के पहले की है।

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