Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ 1 2 3 4 5 2 - तदनन्तर स्वदार सतोष व्रत के पाँच अतिचार जानने योग्य हैं, लेकिन आचरण करने योग्य नहीं हैं 1 3 अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 191 स्तेनाहृत- स्तेन (चोर), आहृत (चुराई गयी ) अर्थात् चोर द्वारा चुराई वस्तु, बहुमूल्य वस्तु सस्ते मे खरीदना । तस्कर प्रयोग - अपने व्यवसायिक कार्यो मे चोरो को प्रेरणा देना, उनका उपयोग करना । विरुद्ध राज्यातिक्रम- राज्य विरुद्ध कार्य करना । कूटतूल कूटमाप-कूडा तोल, कूडा माप करना अर्थात् बिना उपयोग के किसी से अधिक लेना और कम देना । सकल्पपूर्वक, जानबूझकर ऐसा करने से यह अनाचार बन जाता है। 4 तत्प्रतिरूपक व्यवहार-नकली वस्तु को असली और असली वस्तु को नकली बताना तत्प्रतिरूपक व्यवहार है। घी मे चरबी मिलाना आदि भी इसी अतिचार मे सम्मिलित हैं। 17 इत्वरका परिगृहीता गमन-कुछ दिन या कुछ मास के लिए किराये पर रखी हुई स्त्री से मैथुन सेवन करना । यह अतिचार नियमो का आशिक रूप से खडन करने से लगता है। अपरिगृहीता गमन-गणिका या किराये पर रखी हुई दूसरे की स्त्री से मैथुन सेवन करना । यह अतिचार व्रत के अतिक्रम से लगता है । अनगक्रीडा- रतिक्रीडा हेतु किसी परकीया के कुच-मर्दन, उदरादि का विकारी भावना से दर्शन, मुख - चुम्बन, हास्यादि कौतुहल करना । यह अतिचार पर स्त्री से मैथुन सेवन का त्याग होने से उसके साथ प्रेमालिङ्गन करने से लगता है । पर- विवाह करना - अपनी सतान के अतिरिक्त दूसरो का विवाहादि करवाना | 18 5 काम भोग की तीव्र अभिलाषा करना । तदनन्तर इच्छा - परिमाण व्रत के पाँच अतिचार जानने चाहिए, लेकिन उनका आचरण नहीं करना चाहिए - 1 क्षेत्र-वस्तु परिमाणातिक्रमण-क्षेत्र (खुली भूमि), वस्तु ( मकान ) । व्रत ग्रहण करते समय जितनी खुली भूमि एव मकानादि की मर्यादा की, उसका परिमाण बढाने के लिए दूसरे क्षेत्र को, बाड आदि तोडकर, पहले मे मिला देना क्षेत्रप्रमाणातिक्रमण अतिचार है । 2. हिरण्य - सुवर्ण प्रमाणातिक्रमण - जितने सोने-चाँदी का परिमाण किया

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257