Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 200
________________ 242: अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय जगा दिया, अब मैं सयम ही लूंगा। सुभद्रा-अरे स्वामिन् । यह क्या? यह तो मैंने विनोद मे कहा था। आप मुझे माफ करदो। यो कहकर सुभद्रा चरणो मे गिर कर रोने लगी। धन्ना ने कहा-ऐसी ही अनुराग है तो तुम भी मेरे साथ सयम ग्रहण कर लो। तब धन्ना के साथ आठो पत्नियाँ तैयार हो जाती हैं। उसी समय भगवान् भी राजगृह के वैभारगिरि पर्वत पर आये । धन्ना को भी ज्ञात हुआ तब वह अनेक दीन-हीनजनो को दान देकर स्त्रियो के साथ शिविका मे बैठकर भगवान् के पास आया और विधिपूर्वक सयम ग्रहण किया। शालिभद्र को जब धन्ना और सुभद्रा की दीक्षा का पता चला तब वह भी शीघ्रता करके दीक्षा लेने श्रेणिक राजा के साथ भगवान् के पास आया और उसने भी भगवान् से सयम ले लिया। भगवान् ने अनेक साधुओ सहित वहाँ से विहार कर दिया।* *टिप्पण- धन्ना और शालिभद्र भगवान् के साथ विहार करके चले गये और बहुश्रुत वनकर पक्ष, मास, दो मास और चार मास की तपस्या करके पारणा करते थे। इस तपश्चर्या से उनके शरीर का मास और रुधिर सूख गया। शरीर केवल हड्डियों का ढॉचा मात्र रह गया । बारह वर्ष व्यतीत हो जाने पर भगवान महावीर के साथ वे दोनो मुनि राजगृह आये। भगवान के राजगृह पदार्पण से जनता में हर्ष की लहर व्याप्त हो गयी और लोगों के झुण्ड के झुण्ड प्रभु के दर्शन वन्दन एव वाणी श्रवण को आने लगे। धन्ना और शालिभद्र के मासक्षपण का पारणा था। वे भगवान् के पास भिक्षा की आज्ञा लेने के लिए पहुंचे। भगवान् ने शालिमद्र मुनि से कहा-तुम्हारी माता के हाथ से पारणा होगा। शालिभद्र मुनि ने प्रभु के कथन को स्वीकार किया एव धन्ना और शालिभद्र मुनि भद्रा के घर पर गोचरी हेतु गये। दोनो मनि भद्रा के गृहद्वार के पास खडे रहे लेकिन भद्रा तो सम्रान्त चित्त वाली बन रही थी। क्योकि वह तो चितन कर रही थी कि भगवान् महावीर के साथ धन्ना एव शालिभद्र मुनि पुन राजगह नगर पधारे हैं और मुझे दर्शन करने जाना है। इसी उधेडबुन में वह दर्शन हेतु तैयारी कर रही थी। धन्ना और शालिभद्र मुनि तप से अत्यन्त कृशकाय हो गये अतएव कोई उन्हें पहचान ही नहीं पाया। भद्रा का तो उधर ध्यान तक नही गया। क्षण-भर खडे रहकर मुनिद्वय पुन भद्रा के महल से लौट गये। जब वे मार्ग में जा रहे थे तो शालिमद्र की पूर्वभव की माता धन्या दही और घी बेचने के लिए आ रही थी, वह सन्मुख मिली। शालिभद्र मुनि को देखते ही वह रोमाचित हो गयी। उसके उरोजो से पयस की धारा प्रवाहित होने लगी। उसने अत्यन्त भक्ति-भाव से शालिभद्र और धन्ना मुनि को दधि बहराया। उस दही को लेकर दोनो मुनि भगवान् के पास पहुँचे और भगवान् को वन्दन-नमस्कार करके पूछा-भगवन् । आपने फरमाया था कि मासक्षपण का पारणा तुम्हारी माँ के हाथ से होगा ता उसके हाथ से पारणा क्यो नहीं हुआ? तब भगवान ने फरमाया-जिस महिला ने तुम्हे दही बहराया, वह तुम्हारे पूर्वमव की माता है। उसका नाम धन्या है। वह धन्या पहले राजगृह के समीप शालिग्राम में आकर रहती थी। उसका सारा वश नष्ट हो गया तो वह अपने पुत्र सगम को लेकर इस गाव मे रहने लगी। वह सगम भेड-बकरियॉ आदि को चराकर अपनी आजीविका चलाता था। एक दिन पर्वोत्सव के समय घर-घर खीर बनी तब सगम ने भी अपनी माता से जिद्द किया कि तुम भी घर पर मेरे लिए खीर बनाओ। लेकिन धन्या के पास मे सामग्री नहीं थी अतः उसने पुत्र को बहुत समझाया, लेकिन पुत्र नहीं माना। तब वह अपने पूर्व वैभव का स्मरण कर जोर-जोर से रुदन करने

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