Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 206
________________ 248 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय कर रही थी, तब राजा उदायन को सिररहित प्रभावती का धड दिखाई दिया जिसे देखकर वह किकर्तव्यविमूढ बन गया। उसके अग-प्रत्यग शिथिल पड गये और हाथो से वीणा छूट गयी। तब महारानी ने पूछा-राजन् ! आप वीणा बजा रहे थे और यकायक यह क्या हुआ? तब उदायन मौन धारण किये बैठा रहा, लेकिन प्रभावती ने जब बार-बार पूछा तो उदायन ने बता ही दिया कि मैने अभी तुम्हारा सिररहित धड नाचते देखा है, अतएव अब तुम्हारी आयु बहुत कम अवशिष्ट है। अपनी मृत्यु को नजदीक जानकर प्रभावती उदासीन नही हुई, अपितु आनन्दमग्न हो गयी, क्योकि उसने सोचा कि मुझे जीवन की चन्द घडियो का उपयोग सयम ग्रहण करने मे करना है। इस प्रकार चितन कर वह अन्त पुर मे गयी और उसने राजा से प्रव्रज्या की आज्ञा मॉगी, लेकिन राजा ने आज्ञा नहीं दी। एक समय रानी ने दासी से देव-पूजा के लिए वस्त्र मगवाये। दासी वस्त्र लाई, उस पर प्रभावती को लाल छीटे दिखाई दिये। तब प्रभावती महारानी ने कहा-ऐसे क्या अशुभ वस्त्र लाई है। यो कहकर क्रोध से आवेशित होकर उसने अपने हाथ मे रहा हुआ दर्पण दे मारा, जिससे तत्क्षण दासी की मृत्य हो गयी। तब महारानी घोर पश्चात्ताप करने लगी कि अहो । आज मेरा अहिसा अणुव्रत भी खण्डित हुआ और पचेन्द्रिय घात-जन्य भयकर पाप भी लगा। ओह ! जब अन्य पचेन्द्रिय घात भी नरक का कारण है तब स्त्री की हत्या अरे, वह तो घोर नरक का कारण है। अब तो चारित्र अगीकार करना मेरे लिए श्रेयस्कर है। यह सोचकर महारानी ने राजा से दीक्षा हेतु अनुमति मांगी कि मेरा अब चन्द घडियो का जीवन है और मैंने एक दासी की हत्या का घोर पाप भी कर डाला। इससे मेरे मन मे भीषण पश्चात्ताप हो रहा है। स्वामिन् ! मै ससार से विरक्त बनकर सयम ग्रहण करना चाहती हूँ, आप अनुग्रह करके अनुज्ञा प्रदान कीजिये। महारानी की अतीव विरक्ति देखकर राजा ने कहा-मैं तुम्हारे मार्ग का कटक नहीं बनना चाहता, लेकिन एक बात अवश्य कहंगा कि तम देव बनो तो मुझे प्रतिबोधित करना। महारानी प्रभावती ने कहा-राजन । ऐसा ही करूँगी। ऐसा कहकर चारित्र ग्रहण कर लिया। कुछ समय सयम पर्याय का पालन कर अत समय मे अनशन कर मृत्यु का वरण कर प्रथम देवलोक का महर्द्धिक देव बन गयी।* *टिप्पणी-त्रिषष्टिश्लाकापुरूषचारित्र मे प्रभावती के देव बनने का उल्लेख है जबकि भगवती सूत्र के वर्णनानुसार प्रभावती राजा उदायन की दीक्षा के समय मौजूद थी क्योकि जब भगवान् वीतभय नगर पधारे तो प्रभावती प्रमुख रानियो के भगवान के समीप जाकर धर्म कथा सुनने का उल्लेख मिलता है। अतएव प्रभावती के देव बनने का कथानक वाद मे जोडा गया है ऐसा सभव है (तत्त्व तु केवलिगम्यम) साथ ही यहाँ पर प्रभावती और उदयन के कथानक मे प्रतिमा पूजन का उल्लेख त्रिषष्टिश्लाकापुरूषचारित्र ने किया है लेकिन भगवतीसूत्र मे उदायन के वर्णन मे ऐसा कोई उल्लेख नहीं है अत प्रतिमा पूजन का वर्णन प्रशिप्त लगता है।

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