Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 229
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 271 जैन साहित्य संस्थान, उदयपुर, प्र.स. 1973, पृ. 11। 29. महावीर री ओलखाण, डॉ. शान्ता भानावत, प्रका अनुपम प्रकाशन, जयपुर, प्र स. 1975, पृ. 56-571 30. महावीर के सिद्धान्त और उपदेश, उपा. अमर मुनि, प्रका. सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, प्र.स 1960, पृ. 32-33। 31 क. गणधरवाद, दलसुख भाई मालवणिया, पृ.66-671 ख. भगवान् महावीर, मूलचंद, प्रका. चैतन्य प्रिटिंग प्रेस, बिजनौर, सन् 1931 पृ.7। ग जैन धर्म का मौलिक इतिहास, आ. श्री हस्तीमलजी म सा , भाग-2, प्रका. जैन इतिहास समिति, जयपुर, प्र.स. 1974, पृ.7-8। 32 गणधरवाद, दलसुख भाई मालवणिया, वही, पृ. 66-67। 33 क. महावीर शासन, श्री ललित-विजय जी, प्रका आत्म-तिलक ग्रन्थ सोसायटी, पूना, वि.सं. 1978, पृ. 101 ख. तीर्थकर चारित्र, बालचंदजी श्रीश्रीमाल, भाग 2, 218। 34 त्रिषष्टिश्लाकापुरूषचारित्र, आ. हेमचन्द्र, सर्ग 10, वही, पृ. 108-9। 35 क. यह वेद वाक्य आवश्यक टीका में से लिया गया है। वृहदारण्यकोपनिषद् मे यह वाक्य इस रूप में मिलता है "विज्ञान धन एवैतेभ्यो भूतेभ्यो समुत्थाय तान्येवानुविनश्यति न प्रेत्य संज्ञा स्तीत्वरे ब्रवीति होवाच याज्ञवल्क्यः।" वृहदारण्यकोपनिषद् 12-938। ख. श्री आवश्यक सूत्र, मलयगिरिवृत्ति, द्वितीय भाग, पत्रांक 3141 36 क. त्रिषष्टिश्लाकापुरूषचारित्र, वही-पृ 1101 ख. गणधरवाद, दलसुख माणवणिया, वही, पृ 1-28। 37. क आचाराग चूर्णि, वही, पत्रांक 363-641 स्थानांग, प्रथमोविभागः,अभयदेवसूरि, आगमोदय समिति, सन् 1918, तृतीय स्थान। ग. वृहत्कल्प सूत्र भाष्य, नियुक्ति भद्रबाहुस्वामी, भाष्यकार सघदास गणि, चतुर्थ विभाग, तृतीय उद्देशक, प्रका जैन आत्मानंद सभा, भावनगर, सन् 1933, पृ. 1067-751 38 क त्रिषष्टिश्लाकापुरूषचारित्र, वही, पृ 110। ख श्रमण भगवान् महावीर, कल्याण विजयजी, वही, पृ.541 39 क. श्री आवश्यक सूत्र, मलयगिरि, द्वितीय भाग, पत्रांक 321!

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