Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 222
________________ 264 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय अनुत्तरज्ञानचर्या का पंचम वर्ष टिप्पणी I चम्पा चम्पा और पृष्ठ चम्पा की निश्रा मे महावीर ने तीन वर्ष चातुर्मास व्यतीत किये थे। चम्पा के पास पूर्णभद्र चैत्य नामक प्रसिद्ध उद्यान था, जहाँ महावीर ठहरते थे। चम्पा के राजा का नाम महावीर के समय दत्त और जितशत्रु मिलता है पर पिछले जीवन मे चम्पा का राजा कूणिक था। ___ जैन सूत्रो मे चम्पा को अगदेश की राजधानी माना है। कोणिक ने जब से अपनी राजधानी बनाई तब से चम्पा अग-मगध की राजधानी कहलाई। पटना से पूर्व मे (कुछ दक्षिण में) लगभग 400 कोस पर चम्पा थी। आजकल इसे चम्पानाला कहते है यह स्थान भागलपुर से तीन मील दूर पश्चिम मे है। I वीतिमय यह नगर महावीर के समय मे सिन्धु-सौवीर देश की राजधानी थी। इसके बाहर मृगवन उद्यान था। महावीर चम्पा से विहार कर यहाँ आये थे और यहाँ के राजा उदायन को प्रव्रज्या देकर वाणिज्यग्राम जाकर वर्षाकाल बिताया था। पजाब के भेरा गाँव को प्राचीन वीतिमय बताते हैं। II उज्जयिनी मालव अर्थात् अवन्ति जनपद की राजधानी उज्जयिनी एक प्राचीन नगरी है। भगवान् महावीर के समय यहाँ प्रद्योतवशी महासेन चण्डप्रद्योत का राज्य था। वह वश परम्परा से जैन धर्मानुयायी था। V उत्सर्ग और अपवाद मार्ग उत्सर्ग मार्ग सामान्यमार्ग है, अत उस पर हर किसी साधक को चलते रहना है। जब तक शक्ति रहे, उत्साह रहे, आपत्तिकाल मे भी किसी प्रकार की ग्लानि का भाव न आये, धर्म एव सघ पर किसी प्रकार का उपद्रव न हो अथवा ज्ञान, दर्शन, चारित्र की क्षति का कोई विशेष प्रसग उपस्थित न हो तब तक उत्सर्ग मार्ग पर ही चलना चाहिये, अपवाद मार्ग पर नहीं। अपवाद मार्ग पर क्वचित कदाचित ही चला जाता है। अपवाद की धारा तलवार की धार से भी अधिक तीक्ष्ण है। इस पर हर कोई साधक, हर समय नहीं चल सकता। जो साधक गीतार्थ है, आचाराग आदि आचार सहिता का पूर्ण अध्ययन कर चुका है, निशीथ आदि छेद सूत्रो के सूक्ष्मतम मर्म का भी ज्ञाता है, उत्सर्ग और अपवाद पदो का अध्ययन ही नहीं अपितु स्पष्ट अनुभव रखता है, वही अपवाद के स्वीकार या परिहार के सम्बन्ध मे ठीक-ठीक निर्णय

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