Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 201
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 243 तब भद्रा सुनियो को वन्दन कर खिन्न मन वाली होकर अपने घर लौट गयी और श्रेणिक अपने महल मे । (त्रिषष्टिशलाकापुरुषचारित्र, पृष्ठ 217-224) इधर धन्ना और शालिभद्र मुनि दोनो समाधिभाव मे लीन हो गये । सथारा पूर्ण होने पर धन्ना मुनि सिद्ध, बुद्ध, मुक्त अवस्था प्राप्त कर गये एवं शालिभद्र मुनि का आयुष्य सात भव कम होने से वे सवार्थसिद्ध विमान मे गये । (शालिभद्रचारित्र, जवाहर किरणावलि, पृष्ठ-260) अन्यत्र यह उल्लेख भी मिलता है कि धन्ना और शालिभद्र मुनि काल करके तेतीस सागरोपम की स्थिति वाले सर्वार्थसिद्ध विमान मे देव हुए। वहाँ से मनुष्य भव प्राप्त कर मुक्ति को प्राप्त करेगे । (त्रिषष्टिशलाकापुरुषचारित्र पृष्ठ 217-224) लगी। उसके रुदन की आवाज को सुनकर पडोसी बहिने आई और रुदन का कारण पूछा । धन्या ने कारण बतलाया तब सभी ने मिलकर दुग्धादि धन्या को दिये। तब धन्या ने खीर बनाई और पुत्र को थाल मे खीर परोस कर स्वय घर के कार्य मे लग गयी। तभी एक मुनिराज मासक्षपण के पारणे में आये और सगम ने उदात्त भावो से वह खीर बहराई। मुनि तो खीर लेकर चले गये। इधर धन्या आई तो पुत्र सगम थाली चाट रहा था । तब धन्या ने खुद के लिये रखी खीर सगम को दे दी। सगम अतृप्त होकर सारी खीर खा गया और अजीर्ण होने से उसी रात्रि मे मुनि को स्मरण करता हुआ मरण को प्राप्त हो गया। उसी सगम का जीव शालिभद्र के रूप मे जन्मा | हे मुनि तुम पूर्वभव सगम ही थे और दही बहराने वाली तुम्हारी माता धन्या है । इस प्रकार दही से पारणा करके दोनो मुनि भगवान् की आज्ञा लेकर अनशन करने के लिए वैभारगिरि पर गये। वहाँ जाकर शिलातल की प्रतिलेखना की और वहाँ पादपोपगमन अनशन स्वीकार करके शरीर का व्युत्सर्ग कर दिया । इधर शालिभद्र की माता भद्रा एव श्रेणिक राजा भगवान् को वदन करने आये। उन्होने वहाँ धन्ना एव शालिभद्र को नहीं देखा तो भगवान् से पूछा- भते । धन्ना और शालिभद्र कहाँ हैं? भगवान् ने फरमाया कि वे आज मासक्षपण के पारणे के लिए तुम्हारे घर आये थे लेकिन तुम्हें यहाँ आने की व्यग्रता थी तुमने मुनियो को देखा तक नहीं, अत वे मुनि तुम्हारे घर से लौट गये। रास्ते मे शालिभद्र की पूर्वभव की माता धन्या ने उन्हे दही बहराया। वे दही से पारणा करके वैभारगिरि पर्वत पर अनशन करने गये हैं । तब भद्रा श्रेणिक राजा के साथ तुरन्त वैभारगिरि" पर पहुँची । वहाँ मुनियों को पाषाण की तरह सोये देखा तो भद्रा रुदन करने लगी- हे वत्स । तुम घर पर आये परन्तु मैं तुम्हे पहिचान न सकी परन्तु तुम मेरे पर इस बात से नाराज मत होना क्योकि तुम तो गृहत्यागी अणगार हो। मैंने सोचा था कि सयम लेकर कभी तो तुम मेरे नेत्रो को तो आनन्द दोगे, लेकिन तुम तो शरीर का ही परित्याग कर रहे हो तब मै अब तुम्हारे दर्शन कैसे करूँगी। तुमने इतनी उग्र तपश्चर्या करके शरीर को कृश क्यों किया? तब भद्रा का मातृ-वात्सल्य देखकर राजा श्रेणिक ने कहा- अरे । तुम इस हर्ष के स्थान पर रुदन क्यों कर रही हो? तुम्हारा पुत्र कितना पराक्रमी है जिसने अपार लक्ष्मी का परित्याग कर प्रभु के चरणो में सयम अगीकार किया और भगवान् महावीर का वास्तविक शिष्य बनने हेतु कठोर तप किया। इस प्रकार राजा श्रेणिक ने प्रतिबोध देकर भद्रा का रुदन समाप्त करवाया।

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