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48 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय
सभी तीर्थकर केवलज्ञान होने के पश्चात् प्रथम देशना मे ही अर्ध-मागधी भाषा में अत्यन्त आह्लादकारी, मर्मस्पर्शी प्रवचन देकर अनेक भव्यात्माओ को सयम पथ पर आरूढ करके, अनेक भव्यात्माओ को श्रावक व्रत ग्रहण करवाकर चतुर्विध सघ की सस्थापना करते हैं। लेकिन भगवान् महावीर के लिए यह सिद्धात लागू नहीं हुआ।
श्वेताम्बर परम्परा मे स्थानाग आदि आगमो मे तथा आवश्यक नियुक्ति, विशेषावश्यक भाष्य, त्रिशष्टिशलाकापुरुषचारित्र आदि आगमेतर साहित्य मे ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान महावीर की प्रथम देशना मे मात्र देव उपस्थित थे। वहाँ कोई भी मनुष्य नहीं था, इसलिए प्रथम देशना को अभाविता परिषद के रूप मे माना है। अभाविता का तात्पर्य इसमे किसी ने कोई व्रत अगीकार नहीं किया।
आचार्य गुणचन्द्र ने अपने ग्रंथ महावीर चरिय मे भगवान् महावीर के प्रथम समवसरण को अभाविता परिषद के रूप मे माना है, फिर भी इस प्रथम परिषद मे मनुष्य उपस्थित थे, ऐसा स्वीकार किया है। ___आचाराग टीकाकार शीलाक ने चउवन्नमहापुरुषचरिय मे अभाविता परिषद का कोई उल्लेख तक नहीं किया। उन्होने ऋजुबालिका के तट पर ही प्रथम देशना मे इन्द्रभूति आदि की दीक्षा का उल्लेख किया है।
आचाराग मे भगवान् की प्रथम देशना देवो के समक्ष हुई-यही उल्लेख मिलता है और स्थानाग मे प्रथम देशना खाली जाने से इसे आश्चर्य रूप माना है। अतएव भगवान् महावीर ने चतुर्विध सघ की स्थापना वैशाख शुक्ला एकादशी को की, यही आगमिक मान्यता स्वीकार करने योग्य है।
इस प्रकार वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन भगवान् महावीर तीर्थ के सस्थापक होने से तीर्थकर की सज्ञा से अभिहित किये जाते थे।
तीर्थकर शब्द का प्रयोग जैनो की तरह बौद्धो ने भी किया है। उनके लकावतार सूत्र मे तीर्थंकर शब्द मिलता है। उनके दीघनिकाय तथा सामञ्जफल सूत्र में 16 तीर्थकरो का उल्लेख मिलता है। वैदिको मे भी तीर्थंकर की जगह अवतार माने है। यद्यपि बौद्धो और वैदिको ने तीर्थंकर या अवतार की कल्पना की है, लेकिन तीर्थंकर शब्द की प्राचीनता जैन इतिहास मे मिलती है।
जैन धर्म मे चौबीस तीर्थकरो का सबसे प्राचीन उल्लेख दष्टिवाद के मूल प्रथमानुयोग मे था लेकिन वर्तमान मे वह लुप्त हो गया है। 100 अद्य सबसे प्राचीन उल्लेख समवायाग, कल्पसूत्र आवश्यक चूर्णि०, आवश्यक नियुक्ति आवश्यकवृत्ति चउप्पन्नमहापुरिषचरियाल त्रिषष्टिशलाकापुरुषचारित्र'" आदि ग्रा मे मिलता है। अंगसूत्र गणधर सुधर्मा स्वामी प्रणीत हैं। भगवान् महावीर को ई पू 557 मे केवलज्ञान तथा 527 मे निर्वाण हुआ। अत समवायाग का रचनाकाल भी ई पू 557 से 527 तक ही है।69