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66 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय प्रणय सुज्येष्ठा का हरण चेलना का : ___अनेक परदेशी देश-विदेश की सूचनाएँ लेकर समय-समय पर राजगृह नगर पहुंचते रहते है। एक बार एक तापसी वैशाली नगर से क्षुब्ध होकर राजगृह पहुंचती है। तापसी के क्षुब्ध होने का कारण यह बना कि तापसी शौचमूलक धर्म का प्रतिपालन करने वाली थी और इसी धर्म का प्रतिपादन करने के लिए वह वैशाली गई थी। वैशाली उस समय की अत्यन्त समृद्धिशाली प्रसिद्ध नगरी थी, जहाँ का राजा चेटक शत्रु राजाओ को भी सेवक बनाने वाला था। उसकी पृथा नामक महारानी थी। राजा चेटक व पृथा, दोनो जिनधर्म के प्रति दृढ निष्ठावान थे। राजा चेटक स्वय बारह व्रतधारी श्रावक था। महारानी पृथा ने अवसर आने पर क्रमश सात पुत्रियो को जन्म दिया और उन्हे जिनधर्म के प्रति अत्यन्त गहरे सस्कार देकर उनकी अस्थि-मज्जाओ मे धर्मानुराग भर दिया।
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही पॉच पुत्रियो को योग्य वरो के सुपर्द कर दिया। वीतिभय के राजा उदयन को प्रभावती, चम्पा के राजा दधिवाहन को पद्मावती, कौशाम्बी के राजा शतानीक को मृगावती, उज्जयिनी के राजा प्रद्योतन को शिवा और कुडग्राम के अधिपति नदीवर्धन, जो प्रभु महावीर के ज्येष्ठ भ्राता थे, उनको ज्येष्ठा को सुपर्द कर दिया।
राजा चेटक की सात पुत्रियो मे से दो पुत्रियाँ कुँवारी रह गईं-सुज्येष्ठा व चेलना। इन दोनो भगिनियो मे आपसी प्रेम अगाध था। दोनो बहने पुनर्वसु के दो तारो की तरह निरन्तर साथ-साथ रहती थीं। दोनो की धार्मिक रुचि अत्यन्त सराहनीय थी। दोनो बहने कन्या अन्त पुर मे निरन्तर स्वाध्याय आदि मे लीन रहती थी। वह तापसी वैशाली मे आकर एक बार कन्या अन्त पुर मे गई आर उसने सोचा कि इन कन्याओ को कुछ भी ज्ञान नहीं है, इसलिए इनको शोचमूलक धर्म तत्त्व के बारे मे ज्ञान देना चाहिए। यही सोचकर उसने वहाँ प्रवचन देना शुरू किया कि शारीरिक शुद्धि ही मात्र धर्म रूप है। बाकी सब अधर्म है। तव सुज्येष्ठा ने कहा कि यह तो आश्रव का द्वार है, कर्मवध का कारण है। वह धर्म कैसे हो सकता है? सुज्येष्ठा ने अनेक प्रमाण देकर तापसी के उस शौचमूलक धर्म का खण्डन कर दिया और कहा कि शरीरशुद्धि मे ही धर्म होता तो फिर मेढक व मछली तो दिन-भर पानी में रहते है, वे सबसे ज्यादा धर्मात्मा होते । इस तरह जव तापसी निरुत्तर हो गई तो उसकी दासियॉ तापसी को देख-देखकर हँसने लगी और उन्होने उस तापसी को कन्या अन्त पुर से बाहर निकाल दिया। (क) शोचमूलक धर्म-गह्य शुद्धिमूलक धर्म