________________
अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय: 97
अत करने वाला है। हे श्रमणो । कोई निर्ग्रन्थ केवली प्ररूपित धर्म की आराधना करते हु परीषह से पीडित प्रबल मोहकर्म के उदय से एक उत्तम भोग भोगने वाली पति की प्राणप्रिया प्रेयसी को देखकर निदान करता है
पुरुष का जीवन दुखमय है क्योकि क्षत्रिय पुरुष युद्ध मे जाते हुए अनेक प्रकार के शस्त्रो के प्रहार से पीडित होते हैं, लेकिन स्त्रियो का जीवन कितना सुखमय होता है । अतएव यदि मेरे सम्यक् आचरित तप, नियम और सयम का फल मिले तो मैं भी भविष्य मे स्त्री सम्बन्धी उत्तम भोगो को भोगता हुआ विचरण करूँ तो यह श्रेष्ठ होगा ।
1
1
हे आयुष्मन् श्रमणो । वह निर्ग्रन्थ उस निदान की आलोचना किये बिना काल करके देवलोक मे पैदा होता है । तत्पश्चात् निदानानुसार स्त्री बनता है, फिर स्त्री पर्याय भोगकर कृष्णपाक्षिक दक्षिण दिशावर्ती नैरयिक बनता है और आगामी भवो मे उसे सम्यक्त्व प्राप्त करना दुर्लभ होता है । यह उस निदान का पापकारी फल है।
4. श्रमणी का पुरुष बनने के लिए निदान :
आयुष्मन् श्रमणो । यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य और सभी दुखो का अत करने वाला है ।
केवली प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए कोई निर्ग्रन्थिन श्रमणी धर्म स्वीकार कर परीषह से बाधित होकर विशुद्ध मातृ-पितृ पक्ष वाले उग्रवशी या भोगवशी पुरुष को देखती है यावत् उसे देखकर वह निदान करती है
स्त्री जीवन दुखमय है, वह परतत्रता की बेडियो मे जकडा है। वह तो एकाकी किसी भी गॉवादि मे नहीं जा सकती। जैसे आम, बिजौरा, इक्षु खण्ड आदि अनेक मनुष्यो के आस्वादन योग्य, इच्छित और अभिलाषणीय होते हैं, वैसे ही स्त्री भी अनेक मनुष्यो के आस्वादन योग्य, इच्छित और अभिलाषणीय होती है । अत स्त्री की अपेक्षा पुरुष का जीवन सुखमय होता है।
यदि सम्यक् रूप से आचरित मेरे तप, नियम और ब्रह्मचर्यादि का विशिष्ट फल हो तो में भी आगामी काल मे उत्तम पुरुष सम्बन्धी काम भोगो को भोगते हुए विचरण करूँ, यही श्रेष्ठ होगा।
इस प्रकार वह श्रमणी निदान करके आलोचना, प्रतिक्रमण किये विना देवलोक मे पैदा होती है, पुन निदानानुसार पुरुष बन जाती है और भोगों को भोग कर दक्षिण पथगामी कृष्णपाक्षिक नैरयिक के रूप में पैदा होती हे, उसे भव-भवान्तर मे सम्यक्त्व की प्राप्ति दुर्लभ होती है।