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102 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय मेघ का निर्वेद :
इधर मेघकुमार भगवान् की दिव्य देशना से विरक्त बना रथ पर आरूढ होता है। वह सम्पूर्ण मार्ग मे वैराग्यमय भावो से ओत-प्रोत बनकर ससार-त्याग का दृढीभूत सकल्प कर लेता है और मार्ग की परिसमाप्ति होने पर रथ से उतरकर अपने माता-पिता के पास पहुंच जाता है। ___ वहॉ पर पहुंचते ही माता-पिता से बोला-मॉ, पिताजी ! मुझे प्रभु का उपदेश रुचिकर लगा है, अत आपकी आज्ञा मिलने पर मैं प्रव्रज्या अगीकार करना चाहता हूँ | मेघकुमार के वचनो को श्रवण करते ही मॉ मूर्छित होकर जमीन पर गिर पडती है। तब उसे पखे आदि से हवा करके सचेतन करते है। होश मे आने पर माता कहती है-बेटा ! तू मेरा इकलौता पुत्र है। तेरे बिना एक पल भी रहना मेरे लिए अत्यन्त कठिन है। बेटा । मैं तेरा क्षण-भर भी वियोग सहन नहीं कर सकती, इसलिए जब हम कालगत हो जाये, तब तुम सयम अगीकार कर लेना।
मेघ-माताश्री कौन जानता है, कौन पहले जायेगा और कौन बाद मे जायेगा? इसलिए आप मुझे आज्ञा प्रदान कर दीजिए।
माता-पिता-बेटा ! अभी तो तू युवावस्था प्राप्त है। इस यौवन मे पहले मनुष्य सम्बन्धी कामभोग का भोग करले, उसके पश्चात् सयम अगीकार कर लेना।
मेघ-माता-पिता | भोग तो नश्वर हैं। वे अवश्यमेव त्याग करने योग्य हैं। वे कर्मबध के स्थान है। अत अब भोग भोगने मे मेरी अभीप्सा नहीं है।
माता-पिता-मेघ ! सयम तलवार की धार पर चलने के समान सुदुष्कर है। नगे पैर चलना, केश लुचन करना, घर-घर से मॉग कर लाना, लूखा-सूखा आहार ग्रहण करना और सरदी-गरमी सहन करना अत्यन्त कठिन है। तू बडा सुकुमाल शरीर वाला है। अतएव तू सयम का पालन नही कर पायेगा।
मेघ-माता-पिता | सयम कायरों के लिए दुष्कर है। शूरवीर तो सयम मे आने वाले परीषहो को समभावपूर्वक सहन करते हैं, उनके लिए सयम दुष्कर नहीं है।
बहुत समझाने के पश्चात् भी जब मेघ का वैराग्य अडिग रहता है, तब माता-पिता अत मे मेघकुमार से कहते हैं कि मात्र एक दिन का राज्य ग्रहण करके फिर सयम लेना। तब मेघकुमार मौन रहते हैं और उनका राज्याभिषेक करते है। तत्पश्चात् उन्हे पूछते हैं आपकी क्या आज्ञा है? ।
मेघकुमार कहता है-राज्यकोष मे से एक लाख स्वर्णमुद्राएँ निकालकर नाई को केशकर्तन हेतु देओ, दो लाख स्वर्ण मुद्राओ से पातरे और रजोहरण मगवाओं।
उनकी आज्ञानुसार एक लाख स्वर्णमुद्राएँ देकर नाई से चार अगुल केश