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82 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय
अभयकुमार माताश्री का दोहद पूर्ण होने पर पुन पौषधशाला मे आता है और पूर्वभव के देवमित्र को सत्कार-सम्मान सहित विदा करता है।
धारिणी महारानी हितकारी, पथ्यकारी आहार से गर्भ का सरक्षण करती हुई 9 मास 7/ रात्रि व्यतीत होने पर सुन्दर पुत्र रत्न का प्रसव करती है। राजा श्रेणिक पुत्र का जन्मोत्सव जात कर्मादि सस्कार करता हुआ 133 बडे ठाठ-बाट से मनाता है और उसका गुणनिष्पन्न नाम "मेघ" रखता है।134
मेघ राजघराने मे पाच धायोXLIV द्वारा परिपालित135 निरन्तर वृद्धि प्राप्त कर रहा है। अष्ट वर्ष मे कलाचार्य के पास गया और उसने 72 कलाओXLY का ज्ञान सीखा ।136 तत्पश्चात् वह बहत्तर कलाओ मे निष्णात हो गया। उसकी चेतना ज्ञान के सौम्य प्रकाश मे जागृत बन गयी। अठारह देशी भाषाओ मे निष्णात बन गया। गीत और नृत्य के साथ-साथ युद्ध मे भी वह कुशल बन गया और वह भोग भोगने में समर्थ बन गया तब तरुणाई की देहलीज पर आने पर माता-पिता ने उसके आठ प्रासादXLVI बनवाये और अष्ट कन्याओ के साथ पाणिग्रहण किया जो कि चौंसठ कलाओXLVII मे निष्णात थी। नूपुरो की झकार और मदगो की वाद्य ध्वनियो का आनन्द लेता हुआ मेघकुमार नवतरुणियो के साथ भौतिक ऋद्धि का उपभोग करने लगा। सौम्य समागम : ___ मण्डिकुक्षी मे मेघकुमार महलो का आनन्द ले रहा है और राजा श्रेणिक अपनी सुन्दर राज्य व्यवस्था से राज्यधुरा का सचालन कर रहा है। राजकीय कार्यो मे व्यस्त रहा हुआ वह यदा-कदा मन बहलाने के लिए उद्यान की सैर कर लिया करता था। एक दिन उसके मन मे राजगृह के बाहर पर्वत की तलहटी मे बने हुए मण्डिकुक्षि उद्यान की सैर करने का चितन चला और वह उसी ओर चल पडा।
पर्वत की तलहटी मे बना मण्डिकुक्षिक उद्यान अपनी रमणीय छटा के कारण विख्यात था। मनमोहक आकर्षक छटा विकीर्ण करने वाले विविध प्रकार के पुष्पो की भीनी-भीनी महक से सारा वातावरण सुगधित बन रहा था। वृक्षो की डालियो पर लटकते फलो से वह दर्शको का मन मोहने वाला था। पादपो की डालियो से सलग्न लताओ की कमनीयता देखते ही बनती थी। अनेक प्रकार के पक्षियो के कलरव से अनुगुजित वह उद्यान विहँसता-सा प्रतीत होता था। एकात शात वातावरण मे वह नन्दन वन समान रमणीय लग रहा था। राजा
(क) मण्डिकुक्षि-राजगृह नगर का एक उद्यान