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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 93 महाराजा श्रेणिक, महारानी चेलना, अभयकुमार, मेघकुमार आदि राजकुमारो को एव समस्त उपस्थित परिषद को भगवान् धर्मोपदेश फरमाने लगते है। सभी बहुत ही हर्षित होकर, एकाग्रचित्त होकर प्रभु की पीयूषवाणी का पान करने लगे हैं। राजा श्रेणिक तो आज प्रभु के प्रथम बार दर्शन कर धन्य-धन्य हो गया है।
वह मन मे चितन कर रहा है कि आज का दिन मेरे लिए अत्यन्त मगलमय है कि मुझे भगवान् के सुन्दर सान्निध्य का सुअवसर मिला और इस विशाल जनभेदिनी के मध्य धर्म-श्रवण का यह अचिन्त्य लाभ भी। वह तो अत्यन्त सवेग भावो से श्रद्धाभिभूत होकर प्रभु को निर्निमेष निहार रहा है और उनकी अमृत देशना का मधुपान भी। इस तल्लीनता मे न जाने कितना समय व्यतीत हो गया, पता ही नहीं चल पाया । भगवान् की देशना पूर्ण हुई और राजा श्रेणिक भगवान् से बोलते हैं-भते! आपकी देशना यथार्थ है, रुचिकर है, अभिलाषणीय है, सत्य और परिपूर्ण है। यही मुझे इष्ट है, अभीष्ट है। इत्यादि वचनो से श्रेणिक अपनी जिन-प्रवचन पर दृढ आस्था प्रकट करता है। उसके इन शुभ भावो से, शुभ लेश्या से मोहनीय कर्म की सात प्रकृतियाँ, दर्शनत्रिक एव अनन्तानुबधी चतुष्क का क्षय हो जाता है ओर वह क्षायिक समकित प्राप्त कर लेता है 1152 अभयकुमार प्रभु की देशना से प्रभावित होकर श्रावक व्रतो को ग्रहण कर लेता है और मेघकुमार दीक्षित होने का सकल्प ग्रहण कर प्रभु से निवेदन करता है-भगवन् आपश्रीजी की दिव्य देशना श्रवण कर, मैं माता-पिता से अनुमति लेकर श्रीचरणो मे प्रव्रजित होना चाहता हूँ।
तब भगवान् ने फरमाया-हे देवानुप्रिय | तुम्हे जैसा सुख हो वैसा करो, किन्तु धर्मकार्य मे विलम्ब न करो।
इस प्रकार अनेक व्यक्तियो ने अनेक त्याग-प्रत्याख्यान किये एव त्याग प्रत्याख्यान कर श्रद्धाभिभूत राजा, महारानी और परिषद पुन लौट गयी। सम्बोधन श्रमण वर्ग को :
समवसरण मे विराजमान भगवान महावीर अपने केवलालोक से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनो के मन मे आने वाली वैकारिक भावनाओ को जान रहे थे, अतएव परिषदादि सभी के लौट जाने पर निर्ग्रन्थ एव निर्ग्रन्थिनो को आमत्रित करके फरमाने लगे -
आर्यों ! श्रेणिक राजा एव चेलनादेवी को देखकर तुम्हारे मन में उनकी तरह मानुषिक भोग भोगने का सकल्प पेदा हुआ। क्या यह कथन सत्य है?
निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिने-हॉ. भगवन यथार्थ है। भगवान्-हे आयुष्मन् श्रमणो ! मैने जिस धर्म का निरुपण किया है, वही