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88 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय के साथ भी धर्म चर्चा करने लगे। चेलना महाराजा की इस प्रकार की अभिरुचि देखकर गद्गद होने लगी, क्योकि इससे पहले महाराजा की धर्म के प्रति को रुचि नहीं थी। यद्यपि चेलना जिनधर्मानुरागिणी थी तथापि महाराजा का इस पहले धर्म के प्रति कोई शेष अनुराग नहीं था।
राजा श्रेणिक के बारे मे अनुश्रुति मिलती है कि वह बौद्ध धर्मानुयायी थलेकिन इतिहासज्ञो की दृष्टि से यह अनुश्रुति अप्रामाणिक ठहरती है। त्रिषष्टि शलाका पुरुष चारित्र मे आचार्य हेमचन्द्र ने श्रेणिक के पिता प्रसेनजित के भगवान् पार्श्वनाथ का व्रतधारी श्रावक बतलाया है।142 डा काशीप्रसाद जायसवाल के मतानुसार श्रेणिक के पूर्वज काशी से मगध आये थे और इसी राजवश में भगवान् पार्श्वनाथ पैदा हुए थे। अतएव श्रेणिक का कुलधर्म भी जैन ही प्रमाणित होता है।143 डा ज्योतिप्रसाद जैन के अनुसार श्रेणिक का भगवान महावीर के जीवन के साथ निकटस्थ सम्बन्ध रहा है। वह भगवान् महावीर के उपासक राजाओ मे प्रमुख था, दिगम्बर परम्परानुसार वह उपासक सघ का प्रमुख था।" ___इतिहास मे श्रेणिक के बारे मे ऐसा उल्लेख मिलता है कि उसको 'वाहीक कुल का सम्राट् बताया है। वाहीक का तात्पर्य है-बहिष्कृत । जब हैहयवशी क्षत्रिय ने सगठित होकर वैशाली गणराज्य की सस्थापना की तब मगध के क्षत्रिय, ज सभवत हैहयवशी थे, उन्होने इस गणराज्य में सम्मिलित होने से मना कर दिया तब 9 मल्ली नरेशो और 9 लिच्छवी नरेशो ने मगध के राजकुल को क्षोभ के कारण बहिष्कृत कर दिया। इसी कारण श्रेणिक वाहीक कुल का कहलाने लगा।45
प्राचीन अनुश्रुति के अनुसार इस प्रकार श्रेणिक के कुल का निर्वासन करने के कारण वह जैनधर्म से विमुख बन गया। कई लेखको ने उल्लेख किया है कि नन्दीग्राम के ब्राह्मणो ने उसे अन्न-पानी नहीं दिया तो वह बड़ा खिन्न हुआ, तब उसने बौद्ध मठ का आश्रय लिया, वहाँ उसका स्वागत-सत्कार हुआ। इस प्रकार आपत्तिकाल मे आश्रय दिया जाने पर वह बौद्ध श्रमणो के प्रति अनुराग रखने लगा। कुछ लोगो का कहना है कि वह बौद्ध बन गया और राज्यारोहण के पश्चात् उसने बौद्ध श्रमणो को आश्रय दिया ।148
श्रेणिक रास एव श्रेणिक बिम्बसार मे ऐसा उल्लेख है कि चेटक ने अपनी कन्या श्रेणिक को देने से इनकार कर दिया था, क्योकि वह बौद्ध मार्गानुयायी था और विवाह के पश्चात् भी श्रेणिक और चेलना का धार्मिक विवाद चलता रहा। लेकिन इन सबका कोई प्रामाणिक आधार नहीं है। त्रिषष्टि शलाकाकार ने बतलाया है कि चेटक ने अपनी कन्या श्रेणिक को इसलिए नहीं दी कि वह वाहीक कुल का था। यहाँ श्रेणिक के परधर्मी होने की कोई चर्चा ही नहीं