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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 89 = मिलती। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि श्रेणिक के बौद्ध होने की - अनुश्रुति हेमचन्द्राचार्य के बाद की अर्थात् बारहवी शताब्दी के बाद की है। के इतिहास लेखको का यह अभिमत है कि श्रेणिक वस्तुत जन्मजात जैन __ था, किन्तु बीच के काल मे उसका जैन मुनियो से सम्पर्क रह नहीं पाया 147 । कालान्तर मे मण्डिकुक्षि उद्यान मे उसका अनाथी मुनि से सम्पर्क हुआ। इसी सम्पर्क से वह श्रमण-धर्म के प्रति अनुरक्त हो गया।
श्रमण-धर्म मे श्रेणिक की अनुरक्ति होने पर वह चेलना आदि महारानियो से इस सम्बन्ध मे चर्चा करता रहता था। उसके मन मे ललक भी पैदा होती थी कि राजगृह मे कोई श्रमण भगवान् आये तो मैं उनकी उपासना करूँ। जब उसे राजगृह के आस-पास भगवान् महावीर के विचरण का पता चला तब से उसके मन मे भगवान् महावीर के दर्शनो की ललक पैदा हो गयी। अपनी इसी अभिलाषा को दिल मे सजोये एक दिन स्नानादि करके, वस्त्रालकारो से विभूषित होकर कोरण्ट पुष्पो की माला युक्त छत्र धारण करके सभा स्थान मे पूर्वाभिमुख होकर सिहासन पर बैठा और अपने प्रमुख अधिकारियो को बुलाकर आदेश दिया-देवानुप्रियो ! राजगृह के बाहर जहाँ लतागृह, उद्यान, शिल्पशालाएँ और दर्भ के कारखाने हैं, वहॉ जो अधिकारी वर्ग है उन्हे कहो-हे देवानुप्रियो । श्रेणिक राजा भभसार ने यह आज्ञा दी है कि पचयाम धर्म के प्रवर्तक, चरम तीर्थकर भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए यहाँ पधारे तब तुम उन्हे उपयुक्त स्थान पर ठहरने की आज्ञा देना और यह प्रिय सवाद मुझ तक पहुंचाना।
इस सवाद से अनुमान लगता है कि इससे पहले राजा श्रेणिक का अनाथी मुनि से सम्पर्क हो गया था इसलिए उसकी श्रद्धा मजबूत बन गयी। _ राज्याधिकारी पुरुष श्रेणिक राजा का कथन श्रवण कर हर्षित हुए सतुष्टित होते है। वे अत्यन्त सौम्य भाव व हर्षातिरेक से प्रफुल्लित हृदय से हाथ जोडकर विनयपूर्वक राजाज्ञा को स्वीकार करते हैं।
तत्पश्चात् वे राजप्रासाद से निकलकर बगीचे आदि मे पहुंचकर वहाँ के अधिकारियो को राजा श्रेणिक का आदेश सुनाते हैं और पुन अपने-अपने स्थान पर लौट कर राजा से सब बात निवेदन करते है। राजा श्रेणिक भगवान् के आगमन का इतजार कर रहा है। वह पलक-पॉवडे बिछाकर प्रभु की बाट देख रहा है, तब कुछ समय पश्चात् पचयाम धर्म के प्रवर्तक भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए गुणशील उद्यान मे पधारते हैं। तव राजगृह नगर के तिराहो, (क) पचयाम-पाँच महाव्रत-अहिमा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह